-बैंगलुरु की कंपनी ने 1.20 करोड़ रुपए की लागत से तैयार कर मंदिर को दान किया है सूर्य तिलक सिस्टम
त्रेतायुग में भगवान राम के जन्म के बाद कलियुग में बुधवार को एक बार फिर दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणों ने अयोध्या में रामलला का तिलक किया। 65 फीट लंबे सिस्टम में अष्टधातु के 20 पाइप और 4 मिरर और 4 लैंस के उपयोग से ये किरणें रामलला के माथे तक पहुंचीं। इसके साथ ही आयावर्त की 500 वर्ष की प्रतीक्षा भी पूरी हो गई। पहले राम मंदिर में राम लला की स्थापना और फिर अब सूर्यवंश में प्रकट हुए रामलला को भगवान सूर्य ने भी तिलक कर दिया। देश के लोगों में इस बार की रामनवमी पर विशेष उत्साह है। कारण यह है कि उनके आराध्य अपने घर में पहुंच गए हैं और सूर्यवंश जिनके नाम पर है,उन सूर्य भगवान ने भी अपनी किरणों से रामलला केे माथे पर अपनी चमक बिखेर दी। अयोध्यावासी इस बार भी मगन हैं और दस हजार से अधिक मंदिरों में एक साथ जन्मोत्सव हुआ। देश के अनेक प्रख्यात कथावाचकों द्वारा रामकथा का गायन, वाचन किया जा रहा है। मंदिरों में बधाई गीत भी गाए गए।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस के बाल कांड के दोहा क्रमांक 195 में भगवान राम के जन्म के उत्साह को इस तरह वर्णित किया है………….मास दिवस कर दिवस भा, मरम न जानई कोइ, रथ समेत रबि थाकेऊ, निसा कवन विधि होइ। बाबा तुलसी लिखते हैं कि सूर्य कुल में जन्म लिए राम को देखकर सूर्य स्वयं मगन हो गए। मगन भी ऐसे हुए कि एक महीना निकल गया और अयोध्या में रात ही नहीं हुई। अयोध्यावासी भी जन्मोत्सव में मगन रहे क्योंकि सूर्य वहीं ठहरे थे और रात हुई ही नहीं और यह रहस्य लोग समझ भी नहीं पाए।
अब हर वर्ष रामनवमी पर सूर्य किरण रामलला का अभिषेक करेंगीं। वर्ष 2043 तक इसकी टाइमिंग भी बढ़ेगी और यह भी पता चला है कि 2043 में वर्ष 2024 की टाइङ्क्षमग को ही दोहराया जाएगा। रामलला के माथे पर उल्टी दिशा से सूर्य किरण रिफ्लैक्ट होकर आती हैं। इसके लिए मंदिर के पहले तल की सीलिंग पर मिरर लगाया गया है। इसी मिरर पर जब बुधवार को सूर्य किरण पड़ी तो वे सीधे रामलला के माथे पर रिफ्लेक्ट हुईं। सूर्य किरण के सिस्टम को इस तरह से सैट किया गया है कि वह आसानी को किसी को दिख नहीं सकेगा। कंपनी ने पूरे सिस्टम के डिजायन और मेकिंग में विज्ञान के साथ-साथ सनातन धर्म की मान्यताओं का भी ध्यान रखा है।
ऐसा है सूर्य किरण सिस्टम
-बेंगलुरू की कंपनी ने 65 फीट लंबाई का पूरा सिस्टम तैयार किया है।
-अष्टधातु से बने 1 मीटर लंबाई वाले 20 पाइप का उपयोग किया गया है।
-पहले तल की सीलिंग से जोड़ते हुए पाइप को अंदर लाया गया है।
-गर्म किरणों को रोकने के लिए फिल्टर लगाए गए हैं।
-विशेष प्रकार के ग्लास से सूर्य किरण का तापमान 50 प्रतिशत तक कम किया गया।
-सिस्टम में लगे दर्पण और लैंस का साइज 1 फीट से कुछ ही कम है।
-पूरा सिस्टम 1 करोड़ 20 लाख रुपए की लागत से तैयार हुआ है।
-सूर्य तिलक सिस्टम को ऑपरेट करना आसान है।
-पुजारी और अन्य स्टाफ को इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा।
राम तिलक में लगा इनका दिमाग
बैंगलुरू की कंपनी ऑप्टिक्स एंड एलायड इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड, सैंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीटयूट रुड़की, भारतीय खगोलीय भौतिकी संस्थान बैंगलुरू के वैज्ञानिकों ने इस पूरे सिस्टम को तैयार किया है। अब अगले 19 वर्ष तक हर वर्ष सूर्य तिलक के समय में सैंकंड और कुछ मिनट की बढ़ोतरी होगी।