-विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से कार्यशाला आयोजित
श्योपुर। किशोर न्याय अधिनियम बालकों की देखरेख और संरक्षण से संबंधित व्यापक कानून है, इसमें किशोरों के विकास के लिए न्याय और अवसरों की व्यवस्था की गई है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं, इसलिए उन्हें कठोर दंड न देकर सुधार का अवसर दिया जाता है ताकि वे अपराध की राह छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें। यह जानकारी विधिक साक्षरता वर्कशॉप में रिसोर्स पर्सन बबीता होरा शर्मा ने दी।
उन्होंने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के बारे में बताते हुए कहा कि 18 वर्ष तक के बालकों को अपराधी न मानकर विधि विवादित बालकों की श्रेणी में रखा जाता है और इनकी जांच प्रक्रिया किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष की जाती है। पुलिस के द्वारा ऐसे बालकों को पकडऩे पर न तो हवालात में बंद किया जा सकता है और न ही जेल भेजा जा सकता है। इस सबकी बजाय बालक को सुधार के लिए किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करके बाल संप्रेक्षण गृह भेजा जाता है। विधि विवादित बालक की जमानत के संबंध में यह प्रावधान है कि यदि बोर्ड को ऐसा विश्वास होता है कि ऐसा बालक किसी ज्ञात अपराधी के संपर्क में नहीं आएगा अथवा उसका भविष्य खतरे में नहीं पड़ेगा तो ऐसे बालकों को जमानत पर छोड़ा जा सकता है।
मंगलवार को जिला विधिक प्राधिकरण श्योपुर द्वारा किशोर न्याय बोर्ड के प्रावधानों की जानकारी देने के लिए कार्यशाला आयोजित की। कार्यशाला में प्राधिकरण अध्यक्ष एवं प्रधान जिला न्यायाधीश राकेश कुमार गुप्त, प्राधिकरण के सचिव अरुण कुमार खरादी के अलावा रिसोर्स पर्सन के रूप में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं किशोर न्याय बोर्ड की प्रभारी बबीता होरा शर्मा मौजूद थीं। इनके अलावा जिला विधिक सहायता अधिाकारी शिखा शर्मा, लीगल एड डिफेंस के पदाधिकारी एवं पैनल अधिवक्ता मौजूद थे।