समझें,मित्रतापूर्ण व्यवहार रोमांटिक संबंध का सिग्नल नहीं, हर महिला की है एक अलग व्यक्तिगत पहचान

महिलाओं द्वारा मित्रतापूर्ण व्यवहार का मतलब यह नहीं समझना चाहिए कि वे रोमांटिक संबंध के लिए कोई सिग्नल दे रहीं है। प्रत्येक महिला का अपना अलग व्यक्तित्व है, मर्यादा है और उसकी अपनी व्यक्तिगत पहचान और नाम भी है। डॉ अदिति ने कहा कि मासिक धर्म, मेनोपॉज और प्रैगनेंसी के समय मिजाज में जो परिवर्तन आते हैं, उसे महिलाओं का व्यवहार नहीं समझना चाहिए। लगातार प्रगति और स्तर में बढ़ोतरी होने के बावजूद समाज में महिला-पुरुष के बीच बराबरी नहीं है। अभी भी यह होता है कि अगर गर्भ में कोई बालिका है तो यह प्रयास होता है कि वह दुनिया में न आए। यह असमानता दूर किए जाने की आवश्यकता है। अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहीं महिलाएं पुरुष से ज्याद सहनशील होती हैं और हर महिला को अपना व्यक्तिगत स्पेस चाहिए। रविवार को कटोराताल स्थित सेल्फी पॉइंट पर आयोजित ओपन माइक में कुछ इस तरह के विचार महिला वक्ताओं ने व्यक्त किए।

दरअसल, महिलाओं की अभिव्यक्ति को समझने के लिए हार्टबीट फाउंडेशन ने रविवार को खुले मंच पर संगोष्ठी का आयोजन किया था। संगोष्ठी में “वे बातें जो महिलाएं चाहती हैं कि पुरुष समझें” विषय पर विशेष वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए हार्टबीट फाउंडेशन के डायरेक्टर आलोक बैंजामिन ने कहा कि आयोजन में पुरुषों को इसलिए बुलाया गया है ताकि वे इन महत्वपूर्ण बातों को सुनें और समझें। उन्होंने कहा कि वास्तविक नारीवाद पुरुष विरोधी नहीं है, बल्कि बराबरी का हक प्रदान करने वाला है। इस दौरान विशेष वक्ता के रूप में इंटरनेशनल ट्रेवलर माधवी सिंह, आकाशवाणी उद्घोषिका तूलिका शर्मा, एचआर नंदिनी तोमर, डॉ अदिति, शिक्षिका अंजना मसीह और युवा वक्ता गरिमा पांडेय ने अपने विचार व्यक्त किए। आयोजन में समाजसेवी विकास गोस्वामी, अर्चना बेंजामिन, अर्चना त्रिवेदी, संदीप जॉय, ऋषि नाथ, संजय सिंह, हेमंत निगम, अमित द्विवेदी, ज्योति चौहान, सबा रहमान, आकाश यादव, रितिक सिंह, निलेश, कादंबरी, श्रुति, श्रद्धा त्रिवेदी आदि उपस्थित थे ।

 

जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है असमानता


-शिक्षिका अंजना मसीह ने कहा कि नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने सात प्रकार के भेदभाव बताए हैं। महिला और पुरुष में यह असमानता जन्म होने के पहले से ही शुरू हो जाती है। घर में बालक-बालिका में भेद होता है। महिलाओं की देखभाल में लापरवाही बरती जाती है। कुपोषण का शिकार भी महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होती हैं। भेदभाव का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेल में एक महिला भले ही अच्छी हो लेकिन उसे पुरुषों के कोच के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता। बॉलीबुड की बात करें तो एक्ट्रेस सोनम कपूर कह चुकी हैं कि एक्टर और एक्ट्रेस के पेमेंट में बहुत अंतर होता है। प्रियंका चौपड़ा जोनस भी सार्वजनिक रूप से बता चुकी हैं कि पुरुष कलाकारों की अपेक्षा महिला कलाकार को दस प्रतिशत ही पेमेंट मिलता है। वर्ष 2023 में हुए सर्वे के दौरान यह सामने आ चुका है कि लोकसभा में महिलाओं का हिस्सा सिर्फ 40 प्रतिशत था। इसके अलावा महिलाओं का मोलेस्टेशन सबसे ज्यादा होता है। मेंटल हॉस्पिटल में पुरुष की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा हैं। ठीक होने के बाद उन्हें कोई लेने नहीं आता। वे मेंटल हॉस्पिटल में ठीक होने के बाद भी समय बिताती हैं। घरेलू असमानता भी हावी है। स्थिति यह है कि महिलाएं काम से लौटने के बाद काम ही पर लौटती हैं। उन्होंने कहा कि हम महिलाएं चाहती हैं कि हमको भी मौका दिया जाए। हम समानता का अधिकार रखते हैं। हमारी भी देखभाल की जाए ताकि हम कुपोषण का शिकार न हो। समान नौकरी है तो समान सेलरी भी हो। खाना बनाना सिर्फ महिलाओं का काम नहीं। यह एक बेसिक स्किल है। जब ईश्वर ने भेदभाव नहीं किया तो हम इंसान कौन होते हैं।

हर महिला की है अपनी पहचान

-आकाशवाणी उद्घोषिका तूलिका शर्मा ने कहा कि भावनात्मक लगाव समझने का विषय है। मनुष्य पशु से सिर्फ इसी बात पर भिन्न है क्योंकि पशु के पास भावना नहीं है। खुशी, हंसी, दुख, आश्चर्य, प्रेम सहित बहुत से इमोशन हैं। सभी में यह इमोशन होता है। कभी किसी ने समझने की कोशिश नहीं की कि महिलाएं एंग्री क्यों होती है, वे इसलिए एंग्री होती हैं क्योंकि वे गुस्सा दबाती हैं और फिर अकेले में रोती रहती हैं। महिलाओं की संख्या मेंटल हॉस्पिटल में ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि हमारे इमोशन हमें मालूम है। यह हमको पता होना चाहिए कि दूसरा कब गुस्सा हो रहा है। छोटे बच्चा जब गुस्सा होता है तब उसके फेस के इम्प्रेशन बदल जाते हैं लेकिन बड़े होते होते हम अपने इमोशन छुपाने लगते हैं। अगर बच्चा सफल होता है तो मां खुश होती है लेकिन अगर मां खुश हो तो क्या बच्चा उसे अपने हिस्से की चॉकलेट देता है। शायद नहीं देता। इसी तरह नाम को लेकर भी असमानता है। प्रत्येक बच्चे का नाम उसकी पहचान होता है। यह नाम बड़े होने तक चलता है, लेकिन शादी होते ही लड़की का नाम बदल जाता है। लड़की या महिला को उसके नाम से बुलाने की बजाय फलाने की मिसेज या फलाने की मम्मी आदि-आदि नाम से पुकारा जाने लगता है, जबकि उसका इमोशन उसके नाम से जुड़ा है। तूलिका शर्मा ने कहा कि मिसेज होना महिला की पहचान नहीं बल्कि एक सामाजिक संबंध है। अगर किसी को बुलाना हो तो महिला के सम्मानित संबोधन के साथ उसके नाम से पुकारे ताकि हर महिला की पहचान बनी रहे।

जरूरी है पर्सनल स्पेस

-एचआर नंदिनी तोमर ने कहा कि प्रत्येक महिला को उसका पर्सनल स्पेस चाहिए और यह बेहद अनिवार्य है। यह पर्सनल स्पेस वह जगह है जहां प्रत्येक महिला स्वयं के साथ समय बिता सके। यह पर्सनल स्पेस नहीं मिल रहा है। सामाजिक स्तर पर हम पर्सनल स्पेस की बात तो करते हैं लेकिन अपने ही मन की नहीं जान पा रहे हैं। अक्सर हम सोचते हैं कि हमें हमारे बारे में अभी उतना सोचने की जरूरत नहीं है। हम यह सोचते ही नहीं हैं कि हमारे आसपास किस तरह की एनर्जी लेकर चल रहे हैं जबकि यह यह हमें पता होना चाहिए। हर लड़की को इमोशनल डिस्टर्बेंस का पता होना जरूरी है। जबकि अन्य जन को उनकी बाउंड्री पता होना चाहिए। अगर वजूद को बनाए रखना है तो हमें खुद के लिए अपना स्पेस डिफाइन करना होगा। अपने आसपास के स्पेस को लेकर अपने परिवार को समझाएं कि स्वयं के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए। अपने स्पेस में खुद को घोंटकर मारने से अच्छा है कि हमारे स्पेस का पता दूसरों को हो। अपने स्पेस, अपनी नीड को लेकर समझौता न करें।

मित्रता उपलब्धता नहीं

-पोस्ट ग्रेजुऐशन की छात्रा गरिमा पांडेय ने कहा कि किसी पुरुष या युवा से मित्रता होना यह नहीं दर्शाता कि कोई महिला या लड़की उसके लिए उपलब्ध है। यह परेशानी हर 18 से 25 वर्ष की युवतियों को उठानी पड़ती है। वे इस सब्जेक्ट पर बात करना चाहती हैं लेकिन शायद उतनी मुखरता से नहीं कर पातीं। पुरुष या लड़कों को यह समझना होगा कि लड़की ना का मतलब ना ही होता है। अगर कर्टसी में कोई छोटी सी स्माइल पास कर दे तो इसका मतलब यह नहीं कि वह उपलब्ध है। अगर दोस्ती है तो उसका मतलब दोस्ती तक ही सीमित होना चाहिए। सभी को हंसी तो फंसी वाला कांसेप्ट भूलना होगा। हम दोस्ती इसलिए करते हैं ताकि एक दूसरे का मनोबल बढ़ा सकें। अगर आपको इमोशन बांटने हैं और उस समय जो आपके सामने खड़ा हो वही दोस्त है। अगर कोई लड़की इशारे में कुछ कहती है तो लड़क उसे कांक्रीट जवाब न समझे। एकदम क्लीयर जवाब जान लेना चाहिए ताकि कोई कन्फ्यूजन न हो। यह जान लेना चाहिए कि हां का मतलब हां और ना का मतलब ना ही होता है। दूसरे पक्ष की ओर से कई बार दायरे को तोडऩे की कोशिश की जाती है। जबकि लड़कों को समझना जरूरी है कि लड़कियों की इच्छा का सम्मान जरूरी है। अगर कम्युनिकेशन क्लीयर न हो तो विवाद बढ़ ही जाता है। हर लड़की एक दोस्त के अलावा एक बेटी भी है। हर बेटी के माता पिता की आंखों में हमेशा एक डर बना रहता है। वे पढ़ा रहे हैं और दहेज भी इक_ा कर रहे हैं। लड़की के पिता पर यह दोहरा बोझ रहता है। अगर बेटी या बेटा पढ़ रहा है तो यह अलग से खर्च क्यों। लड़की सामान्य स्थिति में घर में आठ घंटे काम करती है, अगर वर्किंग वुमन हो जाए तो घर और बाहर आठ-आठ घन्टे दोहरा काम करना पड़ता है।

महिलाएं बराबर नहीं बल्कि पुरुष से थोड़ी ज्यादा

-इंटरनेशनल ट्रेवलर माधवी सिंह ने कहा कि वर्तमान में महिला और पुरुष बराबर हैं। हालांकि मैं मानती हूं कि महिला पुरुष के बराबर नहीं बल्कि पुरुष से थोड़ी ज्यादा ही हैं। पुरुष एक दिन के लिए अपने घर का काम नहीं कर सकता। जबकि महिलाएं कभी घर के काम से नहीं थकतीं। वे हमेशा से ही पुरुष के बराबर खड़ी हंै। महिलाओं ने हर स्थिति में त्याग की मिसाल की कायम की है। इसके बावजूद अगर बच्चा बिगड़ जाए तो कहा जाता है कि मां ने बिगाड़ दिया और अच्छा निकल जाए तो कहते हैं पापा पर गया है। यह तब है जब बच्चों की समस्या का सॉल्यूशन पापा के पास नहीं होता जबकि मां के पास बच्चों की हर समस्या का हल होता है। हमारे घरों की महिलाएं सबसे पहली गुरू होती हैं। पौराणिक काल की बात करें तो गार्गी निडर होकर पुरुष से तर्क करती थीं। फिजिक को लेकर बात करें तो पुरुष की बॉडी मस्क्युलर होती है लेकिन महिला का शरीर ज्यादा टॉलरेट करने वाला होता है। पुरुष एक दिन भी डिलेवरी का पेन सहन नहीं कर सकता। जबकि महिला पांच से सात दिन तक दर्द सहन करती है। कोई पुरुष नहीं यह नहीं करता कि तकलीफ होने पर महिला को पांच दिन आराम करने की बात कहे। तमाम विपरीत स्थितियां होने के बाद भी महिला अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होती है। वर्तमान समय की बात करें तो अब लड़कियां पढ़ी लिखी हैं। ट्रिप पर जाते समय मुझे लड़कियां मिलती हैं और मेंटली स्ट्रांग होती हैं। हमारे भारत की आजादी के बाद इंदिरा जी, ब्रिटेन की पीएम मार्गरेट थ्रेचर, लेडी कैथरीन, विक्टोरिया जैसी महिलाएं हुई हैं। अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया लेकिन उनकी बेटी ने उसे बढ़ाया। महिलाओं को जब जब मौका मिला तलवार से भी अपना जौहर दिखाया। मौका मिलने पर महिलाएं अपनी क्षमता दिखाती हैं। दायरे को तोडऩे वाली लड़कियों ने नाम किया है। यह समझना होगा कि घर में जो महिला है उसका योगदान अतुल्य है वो पूरे समाज को बना रही है। जो आज सफल है उसके पीछे उसकी वाइफ जरूर होगी।

One thought on “समझें,मित्रतापूर्ण व्यवहार रोमांटिक संबंध का सिग्नल नहीं, हर महिला की है एक अलग व्यक्तिगत पहचान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!