रामचरित मानस के पात्र (सीरीज)
डिस्क्लेमर:-
इस आलेख श्रंखला में वैचारिक आजादी लेकर लेखक ने अपने मानस के अनुसार विवेचना करने की कोशिश की है, कृपया, इसको पौराणिक विवेचना की श्रेणी में न रखें।
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हर स्थिति से निपटने की सीख देता है बचपन से ही जिज्ञासु हनुमान का जीवन चरित्र
“कपि के वचन सप्रेम सुनि,उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास।।”
जब भी जीवन में निराश भाव आए, बलहीनता महसूस हो, भय लगे या स्वयं पर विश्वास पर न हो तो रामचरित मानस में मौजूद राम के अनुगामी हनुमान का चरित्र, उनका कृतित्व, लक्ष्य के प्रति एकाग्रता, प्रबंधन, स्वामीभक्ति, बौद्धिक कौशल और विनम्रता के साथ बल प्रयोग करने का तरीका हर स्थिति से उबरने की सीख देता है। अशोक वाटिका में मां सीता की खोज में पहुंचे हनुमान सिखाते हैं कि जब आपके अपने आपकी मौजूदगी पर संशय करें तो विनम्रता के साथ अपनी मौजूदगी का अहसास कराना चाहिए ताकि जो आपके नजदीकी हैं वे आशंकित न हों। हनुमान पहली बार ही माता सीता से मिलते हैं, यहां हनुमान द्वारा प्रेम, भक्ति और रस के साथ कही भगवान श्री राम की गाथा को सुनने के बाद भी रावण की माया से आशंकित मां सीता एकदम से विश्वास नहीं करतीं लेकिन हनुमान अपने संवाद कौशल से उनको यह भरोसा दिलाते हैं कि वे राम के ही दूत हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के सुंदरकांड में इस संवाद का अवधी में वर्णन किया है। गोस्वामी जी ने अकेले हनुमान के चरित्र से न सिर्फ तमाम व्यावहारिक कठिनाइयों से उबरने की सीख दी, बल्कि यह भी जताया है कि अगर आप अपनी क्षमता पर खुद ही संदेह करने लगे तो आत्मविश्वास कम होने के साथ निराशा भाव भी बढ़ेगा।
लघुता अपनाना भी है बल का सही प्रयोग
सुंदरकांड में हनुमान तीन बार लघु रूप लेते हैं। यहां बाबा तुलसी के हनुमान यह दर्शाते हैं कि आप कितने भी बलशाली हों लेकिन अगर बल का सही प्रयोग न किया गया तो बलशाली होना भी व्यर्थ हो सकता है। सर्वप्रथम वे समुद्र लांघने के लिए चले तो रास्ते में सुरसा की परीक्षा के समय “जस-जस सुरसा रूप बढ़ावा, तासु दून कपि रूप दिखावा” यानि वे बल का प्रदर्शन करके अपनी क्षमता का अहसास कराते हैं लेकिन जब उन्हें लगता है कि इसमें समय व्यर्थ जा रहा है तो सुरसा के वचन को पूरा करने के लिए वे सूक्ष्म रूप लेकर उनके मुंह में प्रवेश करके बाहर आ जाते हैं। इससे यह समझ आता है कि बलशाली होने का सही महत्व तब है जब अपने अहं को घटाकर परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेकर मुसीबत से निजात पा ली जाए। इसके बाद लंका प्रवेश के समय वे लघु रूप में हैं लेकिन लंकिनी नाम की राक्षसी को दंड देते समय लघुता या विनय का मार्ग नहीं अपनाते, बल्कि मुठिका के माध्यम से दंड देते हैं। यह बताता है कि आसपास मौजूद कुवृत्तियां जब हमें अनावश्यक सताने लगें तो दंड की नीति अपनाकर शमन करना चाहिए। तीसरी बार हनुमान लघुता को चातुर्य का माध्यम बनाते हैं। लंका प्रवेश के बाद वे सबसे लघु रूप धारण किए हैं। सीता माता हैं तो उनके संशय को खत्म करने के लिए वे अपना व्यापक रूप दिखाते हैं और फिर लघुता अपना लेते हैं यानि हमारे आसपास जब हमसे बड़े और सम्मानित व्यक्तित्व हैं तब लघुता अपनाए रहनी चाहिए। अनावश्यक बल दिखाना अनुशासनहीनता ही कही जाएगी। दूसरी ओर रावण जैसे विद्वान के सामने भी हनुमान विनम्र हैं, लघुता और दास भाव अपनाए हैं, लेकिन जब बातों से बात नहीं बनी तो बुद्धि चातुर्य का प्रदर्शन किया और लंका के संसाधनों से ही लंका दहन कर दिया। यहां से वापस आने के बाद वे भगवान राम और अपने साथियों के सामने फिर से लघुता अपना लेते हैं। यह आख्यान बताता है कि विनम्रता के साथ लघुता अपनाए रखना भी बलशाली होने की पहचान है।
लक्ष्य के प्रति एकाग्रता
रामभक्त हनुमान से लक्ष्य के प्रति एकाग्रता की सीख ली जा सकती है। किष्कंधा में वानरराज सुग्रीव अपने मित्र राम और लक्ष्मण की मदद करने के लिए मंत्रियों से मंत्रणा कर रहे हैं, तब हनुमान चुप हैं। यहां वे अपने बल का प्रदर्शन करने की बजाय राजाज्ञा का इंतजार करते हैं और खोजी दल में चयनित होने के बाद वे अपने सबसे वरिष्ठ साथी जामवंत की सलाह के बाद स्वयं का प्रस्तुत करते हैं। एक बार जब माता सीता को खोजने का लक्ष्य मिला तो फिर वे एकाग्रता के साथ अपने लक्ष्य को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। समुद्र पार करते समय मैनाक विनम्रता से विश्राम का अनुरोध कर रहे हैं लेकिन हनुमान विनम्रता के साथ ही विनम्र अनुरोध को अस्वीकार कर देते हैं। विनम्रता के साथ अस्वीकार करने के बाद वे मैनाक को छूकर आगे बढ़ जाते हैं। जो यह दर्शाता है कि लक्ष्य के प्रति बढ़ते समय अगर अच्छे शुभचिंतक मिलें तो उन्हें ठुकराइये मत बल्कि उनका मान रखकर आगे बढ़ जाइये ताकि आपके समर्थक आपके पीछे बने रहें। इसके बाद वे लक्ष्य प्राप्ति यानि माता सीता की खोज करने तक रुके नहीं।
बौद्धिक कौशल दे सकता है तनाव से मुक्ति
प्रतिस्पर्धा के वर्तमान युग में विद्यार्थी से लेकर प्रतिभागी तक और किसान से लेकर व्यवसायी तक सभी को मानसिक तनाव से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में गोस्वामी तुलसीदास के हनुमान बढ़ती प्रतिस्पर्धा से उपज रहे तनाव को अपने बुद्धि कौशल से परास्त कर सफलता हासिल करने की सीख दे रहे हैं। हनुमान अपने कृतित्व से सिखाते हैं कि सामान्य प्रयास से भी तनाव को दूर किया जा सकता है। सोचिए कितना दबाव होगा उसके बाद भी लंका जाते समय हनुमान राह की हर बाधा का सामना बुद्धि, बल, चातुर्य और विनम्रता के साथ करते हैं।
ये सीख देता है हनुमान का चरित्र
वैसे तो हनुमान का चरित्र रामगाथा का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, हनुमान को आसानी से नहीं समझा जा सकता और वे यह भी जताते हैं कि उनको समझना सबसे आसान भी है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में और महाकवि वाल्मीकि ने रामायण के सुंदरकांड में हनुमान के महाबली, विनम्र, चतुर, विनोदी, रणनीतिज्ञ और मौन-मुखर चरित्र को गढ़ा है। वे संकट के समय सबसे आगे हैं और सफलता के बाद सबसे पीछे और मौन हैं। वे बताते हैं कि चारित्रिक सामथ्र्य से सफलता हासिल होती और सफलता पचाने का सामथ्र्य भी बेहद अनिवार्य है। मेघनाद द्वारा अशोक वाटिका में ब्रह्मास्त्र प्रयोग के समय वे वीर का मान रखने के लिए आघात सह रहे हैं लेकिन युद्ध शुरू हो गया तो फिर वे उसी मेघनाद के वध का हर प्रयत्न कर रहे हैं। लक्ष्मण का साधन बनकर मेघनाद के वध में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इस भूमिका से वे सिखाते हैं कि मानसिक दृढ़ता के साथ अपने आदर्श बनाए रखना बेहद अनिवार्य है।
हर समय सीखते रहिये
हनुमान भगवान राम के अनन्य हैं, सत्ता के सबसे नजदीक हैं, वे चाहें तो सब पा सकते हैं। इसके बाद भी वे हर क्षण नया सीखने के प्रति लालायित हैं। वे सुरसा से भी सीखते हैं और लंकिनी से भी सीख लेेते हैं। वे रावण के दरबार में संसाधन प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और फिर काम पूरा करके माता सीता को सूचना के साथ यह भरोसा भी देते हैं कि उनके पास भी माता सीता को ले जाने की क्षमता है लेकिन यह उनके स्वामी अर्थात भगवान राम का आदेश नहीं है। वे अपनी नेतृत्वक्षमता का अनावश्यक प्रदर्शन नहीं करते लेकिन जब-जब उनके साथी किसी द्वंद्व में फंसते हैं तब-तब वे आगे आकर कमान संभालने के लिए प्रस्तुत होते हैं, इससे साथियों में हनुमान के प्रति विश्वास और दृढ़ होता है।
सफलता आसान नहीं
हनुमान यह सिखाते हैं कि कोई भी कार्य आसान नहीं और कार्य में सफल होने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना बेहद जरूरी है। वे राम-रावण युद्ध से पहले ही विभीषण से मिल चुके हैं और लंका से अपमानित होने के बाद जब विभीषण भगवान राम के शिविर में आते हैं तो हनुमान उनके पक्षधर हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि विभीषण की भूमिका युद्ध में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर वे संजीवनी बूटी लेने जाते समय रास्ते में मिले राक्षस की कुटिलता पर चातुर्य से विजय पाते हैं। हनुमान अपने हर कार्य को बिना विचलित हुए करने के लिए आगे बढ़ते हैं। अनुभवियों की सलाह लेते हैं और समकक्षों की योजना में शरीक होते हैं।
कुछ उदाहरण जो जिनसे बनते हैं हनुमान विशेष
दृढ़ निश्चयी
-हनुमान ने लंका में जाकर अकेले ही न सिर्फ अपने बल और दृढ़ निश्चय से लंका वासियों को परिचित कराया बल्कि रावण की सेना में भी रामसेना की सामर्थ का संदेश दे आए। वे अथाह समुद्र से शंकित नहीं हुए बल्कि अपनी इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय के साथ रास्ते की बाधाओं को पार कर लंका पहुंचे।
विनम्र
-माता सीता की खोज के लिए सब समुद्र के किनारे पर पहुंचने के बाद अपने-अपने बल को लेकर बखान और संशय प्रकट कर रहे हैं, लेकिन हनुमान चुप हैं। सबसे बुजुर्ग और अनुभवी जामवंत के कहने के बाद भी वे एकदम से बल पर अभिमान दिखाने की बजाय विनम्रता के साथ चुप्पी साधे हैं। अनुभवी जामवंत जब उनको राम के कार्य को लेकर उत्साहित करते हैं तब वे अपने स्वामी के काम के लिए बल की एक झलक दिखाते हैं। मतलब यह कि भले ही आप अतुलित बलशाली हो लेकिन बल प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
ज्ञान और बुद्धि कौशल
अशोक वाटिका में मेघनाद से युद्ध के समय वे अनावश्यक बल नहीं दिखाते और पाश में बंध जाते हैं। माता सीता के संशय को दूर करने के लिए भूधराकार शरीर दिखाते हैं। रावण की सभा में मानसिक परिपक्वता का परिचय देते हैं। एक ही स्थान पर अपने बुद्धि कौशल से अलग-अलग तरीके से अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके अपने ज्ञान और बुद्धि कौशल का परिचय देते हैं।
समस्या की बजाय समाधान
रणभूमि में शक्ति से मूर्छित लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी लाने के लिए जाते समय वैद्य सुषेन ने उन्हेें सिर्फ पता बताया। इसके बाद पहाड़ सहित संजीवनी बूटी लाने का काम उन्होंने अपने विवेक से किया। इससे यह समझ आता है कि काम के लिए जाते समय शंका रखने की बजाय समाधान के बारे में सोचना चाहिए।
आत्ममुग्धता से दूर
लंका दहन करके वे वापस लौटे और सीता की सुधि लाने की बात बताई और फिर चुप हो गए। हनुमान ने अपने साथियों के समक्ष बल का बखान नहीं किया। वे आत्म मुग्धता से दूर हैं और जो भी काम किया उसका श्रेय भगवान राम को ही दे रहे हैं। उनके साथी उनके इस व्यवहार से प्रसन्न हैं और उनके स्वामी उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा कर रहे हैं। वे सुग्रीव के साथी हैं और भगवान राम के भक्त हैं। वे अपने साथी सुग्रीव की भलाई के लिए हर प्रकार से प्रस्तुत रहते हैं।
लेखक परिचय
नाम: राधा शर्मा
वर्क प्रोफायल: शासकीय शिक्षिका हैं। वर्तमान में शासकीय विद्यालय में प्राचार्य के पद पर पदस्थ हैं। मैं नदी हूं के नाम से कविता संकलन प्रकाशित हो चुका है।
Very nice
“सुन्दर सामर्थ्यवान प्रभु ”
श्री हनुमान जी के चरित्र का अदभुत विश्लेषण है प्रेरणादायक हर विषय बिंदु परिस्तिथि मैं सार्थक ज्ञान है हनुमान जी की लीला को ध्यान से समझने पर हम सबको सदैव सशक्त समाधान शाली प्रभावशाली मार्ग प्रशस्त करने में सफल सिद्ध होता है हर स्तिथि में प्रभु का जीवन चरित्र का अनुकरण कर खुद के बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण कर स्वयं को भी प्रभु कृपा से विशेष बनाया जा सकता है सिर्फ मन को सही दिशा और जगत कल्याण में लगाये हनुमान जी सदैव कृपा करेंगे !
Great one .
साधु साधु
बहुत ही सार्थक लेख