जरूरी जानकारी: 42 फीसदी 18 वर्ष से कम आयु के देश में हर दूसरा बालक किसी न किसी उत्पीडऩ का शिकार

लगभग 145 करोड़ वाले भारत में सबसे अधिक युवा हैं। इसमें से भी लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा ऐसे किशोरों की जनसंख्या का है, जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं। इन बालकों में से हर दूसरे बालक को कभी न कभी किसी न किसी उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ा है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की रिपोट्र्स में यह तथ्य सामने आ चुके हैं। बालक या बालिकाओं से होने वाले इस तरह के यौन उत्पीडऩ से निपटने के लिए वर्ष 2012 में पॉक्सो एक्ट लाया गया और फिर अगस्त 2019 में यह संशोधित किया गया है। इस लिंग निरपेक्ष या जैंडर न्यूट्रल कानून में सजा के कड़े प्रावधान हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस लिंग निरपेक्ष कानून की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि बच्चों के साथ यौन अपराध लगातार बढ़ रहे थे। इस तरह के यौन अपराधों को संबोधित करने के लिए कोई अलग व्यवस्था नहीं थी। कानून के अंतर्गत बच्चों के साथ सैक्सुअल असॉल्ट, सैक्सुअल हैरिसमेंट, पॉर्नोग्राफी आदि अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है। कानून के अंतर्गत इस तरह के मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है।

 

लिंग निरपेक्ष है पॉक्सो अधिनियम

 

-अगर बालक ने किसी जिम्मेदार व्यक्ति जैसे शिक्षक, काउन्सिलर, अधिकारी आदि को बताया है तो संंबंधित को 24 घंटे की अवधि में इसकी सूचना देना अनिवार्य है, अगर समय पर सूचना नहीं दी तो सजा या जुर्माना या दोनों का दंड मिल सकता है।

 

प्रकरण दर्ज करना अनिवार्य है

 

-बच्चे की सहमति किसी भी यौन कृत्य में महत्वहीन है।
-आरोपी को अपनी निर्दोषता स्वयं सिद्ध करनी होगी।
-18 वर्ष से कम उम्र के लड़कों के साथ हुआ यौन शोषण भी रेप कहलाएगा।
-अपराध करने का प्रयास भी अपराध माना जाएगा।
-अपराधी को कम से कम तीन वर्ष की सजा और जुर्माना हो सकता है।

 

ये छह राहत जो बच्चों के लिए हैं

-बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार सम्बन्धी प्रक्रिया।
-आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा एवं देखरेख।
-सुरक्षा और देखभाल।
-त्वरित प्रक्रिया
-मुआवजा

 

शोषक को सजा

व्यापक रूप में ऐसे समझे की बच्चे को बार-बार बयान देने न्यायालय ना आना पड़े, बच्चे को आक्रमक सवालों का सामना ना करना पड़े, अभियुक्त के वकील को बच्चे के चरित्र हनन की इजाज़त नहीं है। माता-पिता/अभिभावक को जिरह के दौरान साथ रहने की अनुमति है। पीडि़त और अभियुक्त का आमना-सामना ना हो, इसके लिए शीशे या पर्दे का उपयोग और न्यायधीश के मार्फ़त ही सवाल जवाब।

 

जानिए ये हैं कुछ मिथक

-शोषण करने वाले अनजान लोग होते है (जबकि वास्तव में नाबालिग के साथ छेड़छाड व दुष्कर्म करने वाले 92.4 प्रतिशत आरोपी परिचित होते हैं)
-अभिभावक सोचते हैं कि हमारे बच्चे सबसे ज़्यादा सुरक्षित हैं। जबकि ऐसा नहीं होता।
-यह सोचा जाता है कि बच्चों का कभी शोषण नहीं होता। समाज अपने बच्चों से बहुत प्यार करता है।
-हमारे बच्चों के साथ ऐसा कुछ नहीं होगा। इस सोच को बदलकर निगरानी की आवश्यकता है।
-शोषणकर्ता मानसिक रूप से बीमार लोग होते हैं। यह सच नहीं है, बहुत से शोषण करने वाले पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं।
-लड़कों का यौन शोषण नहीं होता

 

बच्चे क्यों नहीं बताते

बच्चों को लगता है की माता-पिता उन पर विश्वास नहीं करेंगे
वो पिता की अच्छे दोस्त है या मेरे रिश्तेदार है
शोषक उनको कहता है की ये हमारा सीक्रेट है
शोषक उनको कहता है की उनको भी अच्छा लग रहा है
शोषक ने कहा की ये एक खेल है
बच्चा सोचता है कि ज़्यादा कुछ नहीं है मुझे चोट नहीं पहुँची बस थोड़ा असहज महसूस हुआ।

 

अधिनियम के अंतर्गत सूचीबद्ध अपराध

 

पॉक्सो 3/4 प्रवेशक लैंगिक हमला।
पॉक्सो 5/6 गुरुतर लैंगिक हमला।
पॉक्सो 7/8 लैंगिक हमला।
पॉक्सो 9/10 गुरुतर प्रवेशक लैंगिक हमलाझ।
पॉक्सो 11/12 लैंगिक उत्पीडऩ।
पॉक्सो 13/14 अश्लील साहित्य के प्रयोजनों हेतु बच्चों का उपयोग।
पॉक्सो 15 अश्लील साहित्य के भंडारण में बच्चे को शामिल करना।

 

पालक डरें नहीं सावधानी बरतें……

बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में सिखायें। ये आप विडीओ के माद्यम से भी कर सकते है
उनको भरोसा दिलायें की आप उन पर विश्वास करते है
उनको कहे कि अगर कोई यौन उत्पीडऩ होता है तो वे उन्हें बिना हिचक बतायें
विवाह समाहरोह में ख़ास ध्यान दें क्योंकि अक्सर ऐसी घटनायें बड़े समारोहों में घटती है।
बच्चों के साथ समय-समय पर इस विषय पर बात करें
यौन उत्पीडऩ की घटना होने पर ज़िला बाल सरक्षण इकाई/ ज़िला बाल कल्याण समिति/ विशेष किशोर न्याय पुलिस से सम्पर्क करें
च्च्यौन उत्पीडऩ से पीडि़त बच्चों में चिंता, अवसाद, एकाकिपन, खुद को नुक़सान पहुँचाना, आत्मसम्मान में कमी, नशा वेवाहिक जीवन में कठिनाई, अपनी संतान के प्रति अतिसरक्षण जैसी मानसिक समस्या पायी जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है की इनको मनोवेज्ञानिक परामर्शकर्ता के सम्पर्क में लाया जाए।

 

लेखक परिचय

नाम:आलोक बेंजामिन
वर्क प्रोफायल: बीते 14 वर्ष से सायकॉलोजिकल काउंसिलर हैं। देश और विदेश में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता के रूप में अलग-अलग संस्थानों के साथ काम कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!