नेता-अपराधी गठजोड़ चर्चाओं में, न्यायालय और सिविल सोसायटी पर चर्चा सबसे कम
इंदौर। हाल ही में इलेक्टोरल बांड को लेकर जो खुलासे हुए हैं और इन खुलासों में जो-जो नाम सामने आए हैं, उनको पढ़-सुनकर आम जन भी दांतों तले उंगलियां दबाकर सोचने को विवश हो गए हैं। हर गली-मौहल्ले, पान की दुकान, चाय की दुकान, नाश्ते की दुकान पर लोग दोने हाथ में लेकर चर्चाओं के साथ चटखारे लेते दिख रहे हैं। हर चर्चा का केन्द्र बिंदु राजनीतिक दलों के नेता, अपराधी और चंदा देने वालों के नाम ही हैं। चर्चा का दूसरा पहलू कैरेक्टर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, ईडी और फिर आने वाले लोकसभा चुनाव है।
इस बीच कुछ जगहों पर इलेक्टोरल बांड को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और सिविल सोसायटी द्वारा दिखाए साहस को लेकर भी चर्चा सुनने को मिल जाती है। अगर प्रतिशत निकालें तो सबसे ज्यादा चर्चा वर्तमान में इस बात पर हो रही है कि इलेक्टोरल बांड की खरीद जिन लोगों या कंपनियों ने की है, उनमें से बहुत से दागी हैं, अब अंदाजे लगाए जा रहे हैं कि कैसे-कैसों से नेताओं की बांडिंग रही है। हालांकि, इस सबके बीच लोग यह भी जानने की कोशिश कर रहे हैं भारतीय राजनीति में भूचाल लाने वाले इलेक्टोरल बांड को सामने लाने में किसकी भूमिका रही है।
हम बताते हैं तो यह सब उजागर करने में और कोई और नहीं बल्कि हमारी सिविल सोसायटी, आरटीआई एक्टिविस्ट और दृढ़ निश्चय के साथ मैदान में डटी रही कानून के जानकारी की टीम है। आम जन और कानून के जानकारों के गठबंधन ने न्यायालय में पुख्ता तरीके से अपनी बात रखी और सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड के जिन्न को बोतल से बाहर करने का आदेश दे दिया। अब लोगों द्वारा एसबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है। पार्टियों को मिले चंदे पर चटखारे लिए जा रहेे हैं।
जानिये, इन्होंने उठाया था सही जानकारियां सामने लाने का बीड़ा
वर्तमान में जिनकी सबसे कम चर्चा हो रही है, उनमें कमियों को सामने लाने वाले एक्टिविस्ट, कानून विद और सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधिपति हैं। इन सभी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है। यही हैं जिनके दृढ़ निश्चय ने एक ऐसे मामले को उजागर किया जिस पर शुरुआत से ही उंगलियां उठ रही थीं। ऐसी ही एक संस्था है, जिसका नाम एडीआर या एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स है। यही संस्था है जिसने संसद में इलेक्टोरल बांड की घोषणा होने के तुरंत बाद वर्ष 2017 में ही एक याचिका दायर कर दी थी। इस तरह के मामले उजागर करने का जुनून और राजनीतिक जानकारियां पब्लिक प्लेटफॉर्म पर पब्लिश करने का माद्दा एडीआर ने दिखाया था।
यह सब करने की शुरुआत लगभग 25 वर्ष पहले गुजरात में भेजे गए एक मैसेज से हुई थी। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रोफेसर त्रिलोचन शास्त्री द्वारा भेजा गया यह संदेश सिर्फ इतना था कि बैठक के लिए मेरे कमरे में आएं। इसके बाद भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के प्रोफेसर्स और कुछ सामान्य लोगों के समूह इक_ा हुआ। यह तय किया गया कि नेता और अपराधियों के गठजोड़ को रोकने के लिए क्या और कैसे कुछ किया जा सकता है।
विचार सरल था लेकिन शुरुआत में लगभग सभी ने इसे अंधेरे में तीर चलाने जैसा मानकर नकार दिया। वर्ष 1999 में सहमति बनी और सामान्य कागज पर 11 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। राजनीतिक दलों में शामिल अपराधियों के अपराधों की लिस्ट सार्वजनिक करने वाले इस समूह ने चुनाव से जुड़ी लगभग हर जानकारी अपने प्लेटफार्म पर प्रकाशित की है।
एक नजर में इलेक्टोरल बांड मामला
संसद में इलेक्टोरल बांड की घोषणा होने के तुरंत बाद वर्ष 2017 में ही एक याचिका दायर कर दी थी। वर्ष 2018 में यह अस्तित्व में आया। कोई भी इन बांड्स को खरीद सकता था। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2023 में निर्णय सुरक्षित कर लिया था। कोर्ट का फैसला आने के बाद भी अभी 2024 में छापे गए बांड की पूरी जानकारी सामने नहीं आई है।
नए डेटा से हुए नए खुलासे
-पूर्व में राजनीतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी सामने आ चुकी है। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 21 मार्च को इलेक्टोरल बांड से जुड़ा पूरा डेटा इलेक्शन कमीशन को सौंपा। आयोग ने इस डेटा को सार्वजनिक कर दिया। इससे यह पता चला कि किस सियासी दल को कितना चुनावी चंदा मिला है।
-इस नए डेटा से खुलासा हुआ है कि तीन शीर्ष दलों को आधे से ज्यादा चंदा 10 कंपनियों से मिला है। इसमें मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रा और उसकी सब्सिडरी वेस्टर्न यूपी पॉवर ने भाजपा और कांग्रेस दोनेां ही सबसे बड़े दलों को सबसे ज्यादा चंदा दिया। इस कंपनी ने भाजपा को 664 और कांग्रेस को 128 करोड़ रुपए चंदा दिया।
-वेदांता समूह ने लगभग 104 करोड़ रुपए की राशि कांग्रेस को चंदे के रूप में दी। मेघा इंजीनियरिंग ने भारत राष्ट्रसमिति को भी 390 करोड़ रुपए का चंदा दिया। फ्यूचर गेमिंग एंड होटल कंपनी ने तृणमूल कांग्रेस को 542 करोड़ रुपए का चंदा दिया।
-इलेक्टोरल बांड से लगभग 623 करोड़ रुपए गोपनीय चंदे के रूप में पार्टियों को मिले हैं। इसमें 466.31 करोड़ रुपए भाजपा को और 70.77 करोड़ रुपए कांग्रेस को मिले थे। यह राशि अप्रेल 2019 की है, जब कंपनियां गुप्त रूप से चंदा दे सकती थीं।
-अप्रेल 2019 से फरवरी 2024 तक डाटा इलेक्टोरल बांड की ताजा सूची में है। इसमें मार्च 2018 से 1 अप्रेल 2019 का डाटा शामिल नहीं है। इस अवधि में लगभग 4002 करोड़ रुपए के 9159 इलेक्टोरल बांड की खरीद हुई थी। इसकी जानकारी के लिए संगठन ने अलग से याचिका लगाई है।
एक रोचक तथ्य यह भी
-हैदराबाद की अरविंदो फार्मा के निदेशकों में से एक पी.सरथ रेड्डी को दिल्ली शराब घोटाले में 10 नवंबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था। इसके पांच बाद ही यानि 16 नवंबर को अरविंदो फार्मा ने 5 करोड़ रुपए के बांड खरीदे। इस खरीद के बाद यानी जून 2023 में पी.सरथ शराब घोटाले में सरकारी गवाह बन गए। इस कंपनी ने कुल मिलाकर 52 करोड़ रुपए का चंदा दिया है।
इन बिंदुओं के आधार पर समझते हैं सच के बाहर आने की बात
-वर्ष 1999 में एडीआर बनने के बाद आरटीआई से जानकारी निकालकर जनहित याचिका और राजनीतिक दलों में शामिल अपराधियों का डेटा पब्लिक प्लेटफार्म पर पब्लिश कर दिया। प्रो. त्रिलोचन शास्त्री के अलावा जगदीप छोकर इस संगठन के संस्थापक सदस्य रहे हैं। एडीआर की ट्रस्टी और एडवोकेट कामिनी जायसवाल ने सरकार के विरुद्ध जारी लड़ाई में टकराव का सामना किया।
-वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के लिए अपनी आपराधिक, वित्तीय और शैक्षणिक पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी घोषित करते हुए शपथपत्र दाखिल करना अनिवार्य कर दिया। इसके बाद जानकारियां जुटाना आसान हो गया।
-बाद में एडीआर से सतर्क नागरिक संगठन, कॉमन कॉज, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन सहित अनय गैर सरकारी संगठनों के साथ चुनाव सुधार से संबंधित मुद्दों पर काम किया। जुलाई 2013 में दाखिल हुई एक याचिका के माध्यम से एनजीओ लोक प्रहरी और एडीआर ने सांसद और विधायकों को दोषी साबित होने पर पद पर रहने से रोक लगाने की मांग की। कोर्ट ने इस पर आदेश जारी किया।
-वर्ष 2018 में न्यायालय ने चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों के लिए यह अनिवार्य किया कि वे स्वयं के अलावा पति-पत्नी और आश्रितों का वित्तीय रिकॉर्ड भी हलफनामे में खुलासा करेंगे। इस संगठन के महत्वपूर्ण सदस्य लोकेश बत्रा ने वर्ष 2014 में लोकसभा उम्मीदवारों के हलफनामों का विश्लेषण किया। इनमें से 185 विजयी उम्मीदवारों पर आपराधिक प्रकरण लंबित थे।
-वर्ष 2019 में यह आंकड़ा 232 हो गया। विजय होने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढऩे के बाद एडीआर एनजीओ ने कैंपेन फंडिंग पर ध्यान केन्द्रित किया। इसके बाद ही चुनावी बांड का मुद्दा पब्लिक फोरम पर उठाया गया। एडीआर के एक्टिविस्ट और एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कानूनी सलाल प्रदान की।
-एडीआर की दिलचस्पी इलेक्टोरल बांड की ओर उसी समय हुई थी जब तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2017 में इसका प्रस्ताव दिया था। तत्कालीन वित्तमंत्री ने प्रस्ताव में यह शामिल किया था कि बांड खरीदने वाले दानदाताओं की पहचान इसलिए छुपाकर रखी जाए क्योंकि पहचान उजागर होने पर दान देने वालों को राजनीतिक निशाना बनाया जा सकता है। इसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी,जिसके आधार पर इलेक्टोरल बांड का मामला अब सुर्खियों में है।