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किश्त-2
ओलंपिक में महिलाओं की भागीदारी
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आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत 1896 में यूनान की राजधानी एथेंस में कई वर्षों की मेहनत के बाद हुई, किंतु उन खेलों में केवल पुरुष एथलीटों ने ही भाग लिया। महिलाओं को चार साल के इंतजार के बाद वर्ष 1900 के पेरिस खेलों में पहली बार शिरकत का अवसर मिला। तब कुल 997 एथलीटों में से 22 महिलाओं ने 05 खेलों में भाग लिया। महिलाओं की हिस्सेदारी वाले खेलों में टेनिस, गोल्फ, पाल-नौकायान, क्रोके और घुड़सवारी की स्पर्धाएं शामिल रहीं। यहां यह उल्लेखनीय है कि घुड़सवारी की स्पर्धाएं पृथक से अंतर्राष्ट्रीय हॉर्स शो के तहत पेरिस विश्व मेले में आयोजित की गई थी, उनको बाद में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा ओलंपिक खेलों के हिस्से के रूप में स्वीकारा गया।
स्विट्जऱलैंड की हेलेन दे पोर्तेलिस ओलंपिक खेलों में भाग लेने तथा पदक जीतने वाली पहली महिला बनी। उन्होंने 1-2 टन, पाल-नौकायान की टीम स्पर्धा में एक स्वर्ण व एक रजत पदक जीता। वे तीन सदस्यीय स्विस दल में एकमात्र महिला थीं, बाकी दो सदस्य उनके पति व पति के भतीजे थे।
ब्रिटेन की शार्लो कूपर ने टेनिस का स्वर्ण पदक जीत कर पहला महिला एकल स्वर्ण पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया, उन्होंने मिश्रित युगल स्पर्धा में भी स्वर्ण अपने नाम किया।
अमरीकी माग्र्रेट ईव्स एबॉट ने 9 होल्स के स्ट्रोक प्ले में 47 के स्कोर से गोल्फ का स्वर्ण पदक जीता, ऐसा करके वे ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाली पहली तथा कोई मेडल जीतने वाली दूसरी अमरीकी महिला बनीं। यद्यपि उन्हें मेडल के स्थान पर सोने का पानी चढ़ा चीनी मिट्टी का कटोरा इनाम के रूप में दिया गया था। उनकी मां मेरी एबॉट ने भी इस स्पर्धा में भाग लिया था, वे 65 के स्कोर से साथ सातवें स्थान पर रहीं। अब तक इतिहास में यह मां-बेटी की ऐसी एकमात्र ऐसी जोड़ी हैं, जिन्होंने एक ही ओलंपिक में, एक ही स्पर्धा में, एक समय में साथ-साथ हिस्सा लिया हो।
घुड़सवारी की स्पर्धाओं में आठ देशों के कुल 64 प्रतिभागियों में तीन महिलाएं भी थीं, जिन्होंने हैक्स एंड हंटर स्पर्धा में पुरुषों के साथ मुकाबला किया था। क्रोके भी ऐसा ही खेल था जहां महिलाओं ने पुरुषों के साथ भाग लिया था, 7 पुरुष तथा 3 महिला प्रतिभागी स्पर्धा का हिस्सा बने। सिंगल्स-वन बॉल स्पर्धा में कुल नौ प्रतिभागियों में तीन महिलाएं थीं तथा सिंगल्स-टू बॉल स्पर्धा में कुल छ: प्रतिभागियों में दो महिलाएं थीं। लुइस एन मेरी देस्प्रे दोनों स्पर्धाओं में पांचवे स्थान पर रहीं।
1900 के खेलों में केवल टेनिस व गोल्फ ही ऐसे दो खेल थे, जिनमें महिलाओं के लिए पृथक से एकल प्रतियोगिताएं थीं। अधिकांश महिला विजेताओं को पदक के स्थान पर कप अथवा ट्रॉफियां प्रदान की गईं थीं।
1904 के सेंट लुई खलों में महिला तीरंदांजी को शामिल किया गया व तीन महिलाओं ने उसमें भाग लिया। 1908 के लंदन खेलों में 37 महिलाओं ने तीरंदांजी, टेनिस व फिगर स्केटिंग की स्पर्धाओं में भाग लिया।
1912 में स्टॉकहोम ओलंपिक में महिला प्रतिभागियों की संख्या 47 थी, तैराकी व डाइविंग में महिलाओं ने पहली बार भाग लिया। 1920 में एंटवर्प में यह संख्या बढ़ कर 65 हुई व 1924 के पेरिस खेलों में 135 महिलाओं ने शिरकत की और तलवारबाजी में भी एक स्पर्धा महिलाओं के लिए पहली बार आयोजित हुयी।
1928 में एम्सटडर्म में हुए खेल महिला प्रतिभागिता के लिए मील का पत्थर थे, यहां पहली बार महिलाओं के लिए ऐथलेटिक्स व जिमनास्टिक्स की प्रतियोगिताएं आयोजित हुईं। 1948 के लंदन खेलों में महिलाओं की नौकायन/कैनोइंग स्पर्धा पहली बार सम्मिलित की गयी व अमरीकी एलिस कोचमैन, उंची कूद में स्वर्ण पदक जीत कर ऐसा करने वाली पहली अश्वेत महिला बनीं।
1952 में हेलसिंकी, फिनलैंड में आयोजित हुए खेलों में घुड़सवारी की ड्रेसाज प्रतियोगिता के नियमों में बदलाव के बाद, ओलंपिक इतिहास में पहली बार महिलाएं भी पुरुषों के मुकाबले में भाग ले सकती थीं। डेनमार्क की लिज हार्टेल ने अपने पहले प्रयास में ही रजत पदक हासिल किया तथा 1956 में स्टॉकहोम में उसी प्रदर्शन को दोहराया। यहां यह उल्लेखीय है कि 1956 के ओलंपिक खेलों का आयोजन मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया में हुआ था, किंतु कड़े संगरोध (क्वारंटीन) नियमों के कारण घोड़ों के आगमन पर रोक होने से घुड़सवारी की स्पर्धाएं स्टॉकहोम में आयोजित हुईं थीं।
अगले दो दशकों तक ओलंपिक खेलों में महिलाओं की भागीदारी में और इजाफा हुआ, 1964 में टोक्यो में बॉली-बॉल और 1968 में मैक्सिको सिटी में निशानेबाजी को महिला स्पर्धाओं की सूची में शामिल किया गया, वहीं 1972 में म्यूनिख में तीरंदाजी की वापसी हुयी। 1976 में मॉन्ट्रियल में बास्केट बॉल, हैंड बॉल व रोइंग तथा मॉस्को 1980 में हॉकी भी सूची में जोड़े गए।
1984 के लॉस एंजलिस खेल फिर नया अध्याय साबित हुए, यहां महिलाओं के लिए कई नए इवेंट्स जोड़े गए। एक ओर जहां सिनक्रोनाइज्ड स्विमिंग तथा रिदमिक जिमनास्टिक्स जैसी स्पर्धाएं थीं, जो केवल महिलाओं के लिए ही आयोजित हुईं, वहीं दूसरी ओर साइकलिंग में रोड रेस व 42 कि.मी. की मैराथन महिलाओं के लिए पहली बार आयेजित हुयी, मैराथन में अमरीकी जॉन बेनॉइट ने 2 घंटे 24 मिनट 52 सेकंड के समय में स्वर्ण जीत कर आलोचकों को हैरान कर दिया। इस वर्ष, केवल महिलाओं की निशानेबाजी स्पर्धाओं का आयोजन पहली बार हुआ, अब तक वे पुरुषों के साथ मिक्सड इवेंट्स में टीम का हिस्सा होती थीं।
1988 में सियोल में टेबल टेनिस ने महिला खेलों की सूची में जगह बनायी, इसी साल केवल महिलाओं के लिए पाल-नौकायन व साइकलिंग ट्रैक में स्प्रिंट स्पर्धा को भी जोड़ा गया। 1991 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने यह निर्णय लिया कि किसी भी नए खेल को शामिल करने से पहले यह अनिवार्य होगा कि उसमें महिलायें भी भाग ले सकें, हालांकि यह नियम केवल नए खेलों पर लागू था, पहले से चले आ रहे खेलों पर नहीं।
1992 में बार्सिलोना में बैडमिंटन को सम्मिलित किया गया तथा पहली बार महिलाओं ने जूडो में भी भाग लिया। निशानेबाजी में स्कीट स्पर्धा आखिरी बार महिला व पुरुषों के लिए एकसाथ मुकाबले के रूप में आयोजित की गयी तथा 24 सालों में पहली बार कोई महिला पुरुषों को हरा कर विजयी हुयी। चीनी ज़ांग शान ने मिक्सड इवेंट में स्वर्ण पदक जीता। अब यह स्पर्धा महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग आयोजित की जाती है। 1992 के खेलों में 35 राष्ट्रों के दलों में कोई महिला नहीं थी।
1996 अटलांटा में महिला फुटबॉल व सॉफ्ट-बॉल पहली बार आयोजित किए गए, जबकि 2000 में सिडनी में महिलाओं के लिए भारोत्तोलन, मॉर्डन पैंटाथेलॉन, ताइक्वॉन्डो, ट्राइथलॉन और ट्रेम्पोलिन की स्पर्धायें पहली बार आयोजित की गयीं। 2004 में एथेंस में महिलाओं ने कुश्ती व तलवारबाजी की सेबर स्पर्धा में पहली बार हिस्सा लिया। 2004 में अफगानिस्तान की महिलाओं ने इतिहास में पहली बार ओलंपिक खेलों में शिरकत की।
2008 बीजिंग में बी.एम.एक्स. साइकलिंग, 3000 मीटर स्टीपल-चेस और 10 कि.मी. मैराथन तैराकी की स्पर्धायें महिलाओं के लिए भी आयेजित की गयी। अब केवल बॉक्सिंग व बेस-बॉल के रूप में दो ही ऐसे खेल बचे थे, जहाँ केवल पुरुष भाग ले सकते थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि, बेस-बॉल का ही एक रूप सॉफ्ट-बॉल केवल महिलाओं के लिए 1996 से आयोजित हो रहा था।
2012 में महिला बॉक्सिंग को शामिल करने व बेस-बॉल को सूची से हटाने के अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के निर्णय से पहली बार ऐसा हुआ कि, महिलाओं ने ओलंपिक के हर खेल में भाग लिया। लंदन 2012 में यह भी पहली बार हुआ कि प्रत्येक राष्ट्र के दल में कम से कम एक महिला अवश्य थी। ब्रुनेई, साउदी अरब व कतर के दलों में भी महिला एथलीट थीं। 2016 रियो में रग्बी को शामिल किया गया व 1900 के बाद पहली बार महिला गोल्फ की भी वापसी हुयी। 2020 टोक्यो में कराटे, स्केटबोर्डिंग, सर्फिंग, स्पोर्ट-क्लाइंबिंग के नए खेलों में महिलाओं ने भी भाग लिया।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति खेलों के संचालन की सर्वोच्च संस्था है और ओलंपिक भावना के अनुरूप वह हर तरह के भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। समिति में पहली बार 1981 में दो महिला सदस्यों का प्रवेश हुआ और वर्तमान में कुल 106 सदस्यों में केवल 20 महिलायें हैं, यह उनके 20 प्रतिशत के न्यूनतम लक्ष्य से भी कम है। अंतर्राष्ट्रीय तैराकी महासंघ वह पहला प्रमुख खेल संगठन था जिसके प्रयासों से 1912 के खेलों में तैराकी व डाइविंग की प्रतियोगिताओं में महिलाओं को सम्मिलित किया गया।
वर्ष 1900 में 22 महिलाओं के साथ शुरू हुआ कारवां प्रारंभिक वर्षों में धीरे-धीरे आगे बढ़ा और 1952 में 519 तक पहुँचा। 1000 की संख्या तक पहुंचने के लिए और बीस वर्षों का इंतजार करना पड़ा जब 1972 में यह संख्या 1059 तक पहुंची। 1980 के दशक में तथा बाद के सालों में इसने गति पकड़ी और 1988 में 2194, 1996 में 3512, 2000 में 4069, 2016 में 5059 और पिछले आयोजन में 5494 तक पहुंच गयी, जो कुल प्रतिभागियों के मान से, अब तक की सर्वाधिक 48.7 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
ओलंपिक खेलों में प्रतिशत के हिसाब से सर्वाधिक महिला प्रतिनिधित्व वाला देश है कोसोवो, जबकि संख्या के मान से संयुक्त राज्य अमरीका ने सर्वाधिक महिला ओलंपियन दिए हैं। अमरीका ही वह पहला राष्ट्र था जिसने 2012 में पुरुषों (261) से अधिक महिला प्रतिभागियों (269) को दल में शामिल किया। जिसका सीधा परिणाम यह हुआ कि, अमरीकी महिलाओं ने 58 पदक जीते, जबकि उनके पुरुषों ने 45 पदक जीते। 2016 में 29 देशों की महिलाओं ने उनके पुरुषों से ज्यादा पदक जीते, जिनमें प्रमुख थे, अमरीका, चीन, रूस, कनाडा, नीदरलैंड, हंगरी, जमैका, स्वीडन व भारत।
2016 में पदक तालिका के प्रथम तीन देशों के कुल पदकों में 50 प्रतिशत से अधिक पदक उनकी महिलाओं ने जीते थे। इसके विपरीत कुछ देश, विशेष कर मध्य पूर्व के राष्ट्र, ऐसे भी थे जिनके दलों में महिला प्रतिनिधित्व बहुत कम था, लेकिन समय के साथ हो रहे बदलावों के साथ ओलंपिक भावना के अनुरूप यह जेंडर गेप, समुदायों, समाजों और राष्टों की सीमायें लांघ कर और कम होगा, जैसा कि दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों में साल दर साल महिला प्रतिनिघत्व लगातार बढ़ रहा है। महिलाओं की खेल गतिविधियों में अधिक भगीदारी का देशों के समग्र प्रदर्शन पर धनात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका सीधा असर विकास दर पर भी देखा जा सकता है।
लेखक परिचय:
नाम: डॉ.शालीन शर्मा
संप्रति: खेल पत्रकारिता से करियर शुरू करने के बाद शासकीय सेवा में पहुंचे और वर्तमान में लेखन को हॉबी के रूप में अपनाकर द ग्रिप न्यूज के लिए खेलों से जुड़े आलेख लिख रहे हैं।