‘माता भूमि पुत्रोअहं पृथिव्या’ का चिंतन ही विकास यात्रा का मूल मंत्र

ग्वालियर। भारतीय संस्कृति का घोष ‘माता भूमि पुत्रोअहं पृथिव्या’ का चिंतन ही हमारे शाश्वत जीवन एवं उसके निर्वहन हेतु सतत विकास यात्रा का मूल मंत्र है। भारत सहित विश्व के अन्यान्य राष्ट्रों को इन समस्याओं के निदान के लिए त्वरित उपाय करने होंगे। इसकी शुरुआत सनातनी संस्कृति, परंपरा और जीवन मूल्यों के शरण में दोबारा जाने से ही संभव है।

प्रकृति के साथ मानव समाज का लगाव कितनी सांस्कृतिक आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि तथाकथित आधुनिक जीवन व्यतीत करते हुए भी हम शांति की खोज में पृथ्वी मां की ऐसी गोद को तलाशते हैं, जो प्रकृति के मूल तत्वों से संपन्न हो, जहां मानव जनित प्रदूषण न्यूनतम हो और प्रकृति अपने अक्षत रूप में उपस्थित हो। हालांकि, यह भी समस्या है कि इसे मनुष्य ने उद्योग का रूप दे दिया है। यह विचार स्वामी ऋषभदेवानंद (कृष्णायन हरिद्वार) आदर्श गोशाला ग्वालियर ने रोटरी क्लब के आयोजन में व्यक्त किए।


शनिवार को रोटरी क्लब ऑफ ग्वालियर द्वारा प्रकृति परिवर्तन विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया।क्लब द्वारा आयोजित साप्ताहिक सभा में प्रकृति परिवर्तन विषय पर विचार रखने के लिए आदर्श गोशाला ग्वालियर का प्रबंधन देख रहे कृष्णायन हरिद्वार के स्वामी ऋषभदेवानंद को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने प्रस्तुत विषय प्रकृति परिवर्तन पर अपने बहुमूल्य विचार रखे। स्वामी जी ने बाहरी प्रकृति के संरक्षण के लिए आपनी आंतरिक प्रकृति के ऊपर ध्यान रखने की उपयोगिता समझाई। इस दौरान रोटरी क्लब के सदस्य मौजूद थे।

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