ओलम्पिक में घुड़सवारी (इक्वेस्ट्रियन) एकमात्र खेल जिसमें एक साथ खेलते हैं महिलाएं और पुरुष

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ऐसा खेल, जिसमें पुरुषों को चुनौती दे रहीं महिला घुडसवार

खेलों के महाकुंभ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में घुड़सवारी (इक्वेस्ट्रियन) ही एकमात्र ऐसी प्रतिस्पर्धा है, जिसमें महिला एवं पुरुष एक साथ भाग लेकर एक दूसरे का मुकाबला करते हैं। इक्वेस्ट्रियन की तीन मुख्य स्पर्धाएं हैं, जिनमें ड्रेसाज, शो जम्पिंग व थ्री डे इवेन्ट शामिल हैं। इन स्पर्धाओं में महिला एवं पुरुष दोनों सवार एकल अथवा दल सदस्य के रूप में भाग ले सकते हैं।


ड्रेसाज स्पर्धा में सवार तथा घोड़े की क्षमताओं, कौशल एवं दोनों के मध्य समन्वय की परीक्षा होती है, जिसमें विभिन्न, गतियों, मुद्राओं व चलन हेतु अंक दिए व काटे जाते हैं।

ओलम्पिक की आधिकारिक परिभाषा अनुसार, ड्रेसाज स्पर्धा में सवार, घोड़े को एक श्रेणीबद्ध गति व मुद्रा हेतु चलाता है, जिससे दोनों के मध्य संचार व समन्वय का प्रदर्शन होता है, सटीक गति, मुद्रा व चाल हेतु अंक दिए जाते हैं।

यद्यपि 1900 के पेरिस खेलों में घुड़सवारी की कुछ स्पर्धायें शामिल थी, किंतु मुख्य रूप से ये खेल 1912 से ही ओलम्पिक खेलों की मुख्य फेरहिस्त में शामिल किए गए। साल 1900 में घुड़सवारी की स्पर्धाओं में आठ देशों के कुल 64 प्रतिभागियों में तीन महिलायें भी थीं, जिन्होंने हैक्स एंड हंटर स्पर्धा में पुरुषों के साथ मुकाबला किया था।

 

1912 से 1948 तक इस खेल में केवल सेना के कमीशन्ड अधिकारी ही हिस्सा ले सकते थे, और इस विचित्र व्यवस्था का चरम तब अधिक चर्चित हुआ जब 1948 के लंदन खेलों में छठवें स्थान पर रहने वाले खिलाड़ी गेहनाल पेरसॉन को सिर्फ इस लिए अयोग्य घोषित किया गया, क्योंकि वह सेना में नॉन-कमीशन्ड अधिकारी होने के कारण प्रतिस्पर्धा के लिए ही अपात्र था।

1948 से 1952 के बीच ड्रेसाज प्रतियोगिता की पात्रता संबंधी नियमों में मूलभूत बदलाव हुए तथा अब सेना के कमीशन्ड अधिकारी, नॉन-कमीशन्ड अधिकारी, समस्त सैनिक, आम नागरिक तथा ओलंिम्पक इतिहास में पहली बार महिलायें भी पुरूषों के मुकाबले में भाग ले सकती थीं। इन्हीं महिलाओं में से एक थीं, डेनमार्क की लिज हार्टेल, जो कि अपने प्रारम्भिक जीवन में पोलियो से ग्रस्त रहने के कारण घुटनों के नीचे से लाचार थीं।

उन्हें घोड़े पर चढऩे व उतरने के लिए सहायता लेनी पड़ती थी। इतनी चुनौतियों व अक्षमताओं के बावजूद उन्होंने 1952 में अपने पहले प्रयास में ही रजत पदक हासिल किया तथा 1956 में स्टॉकहोम में उसी प्रदर्शन को दोहराया। 1956 में लिज़ हार्टेल पुरूषों के मुकाबले पदक जीतने वाली अकेली महिला नहीं थीं, जर्मनी की लिसेलॉट लिन्सेनहॉफ ने कांस्य पदक जीत कर महिलाओं के दूसरे प्रयास को यादगाार बनाया।

1960, 1964 व 1968 में पहले आठ खिलाडिय़ों में दो-दो महिलाएं थीं। 1972 के म्यूनिख खेलों में कुल 33 सवारों में 21 महिलायें थीं तथा लिसेलॉट लिन्सेनहॉफ पुरुषों को मात दे कर स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला बनीं। प्रतियोगिता का रजत पदक भी एक महिला यानी मॉस्को विश्वविद्यालय की जीवविज्ञान की प्रोफेसर येलेना पेट्रिश्कोवा के खाते में गया।

1976 में प्रथम आठ में स्वर्ण पदक विजेता क्रिस्टीन स्टकेलबर्गर सहित चार महिलाएं थीं। दोबारा 1980 प्रथम पांच में स्वर्ण पदक विजेता एलिजाबेथ थोरर सहित तीन महिलाएं थीं। इसी प्रकार 1984 लॉस एन्जलिस में प्रथम आठ में रजत पदक विजेता एनी जेन्सन सहित चार महिलाएं थीं।

1988 के सियोल खेलों में महिलाओं ने पूरी तरह ही बाजी मार ली और पहली बार तीनों पदकों पर कब्जा जमा लिया। इस बार प्रथम आठ में सात महिलाएं थीं। जर्मनी की निकोल अपहॉफ प्रथम, फ्रांस की मार्गिल ओटो क्रेपिन द्वितीय एवं स्वीडन की क्रिस्टीन स्टकेलबर्गर तृतीय स्थान पर रहीं। तब से अब तक स्वर्ण और रजत पदक पर एक तरह से महिलाओं का एकाधिकार ही रहा है। 1972 के बाद से 2020 तक महिला प्रतियोगियों द्वारा कुल 13 बार में से 12 बार स्वर्ण, 11 बार रजत एवं 07 बार कांस्य पदक अपने नाम किया गया है।

टीम स्पर्धा में चार सदस्यों का दल होता है, किंतु तीन सबसे अच्छे अंक ही जोड़े जाते हैं। टीम स्पर्धा में भी महिलाओं की सफलता की कहानी उनके पहले प्रयास से ही श्ुरू हो गयी थी। 1952 में कांस्य पदक विजेता जर्मन टीम में एक महिला थी। 1956 में रजत पदक विजेता जर्मन टीम की सभी सदस्य महिलाएं थीं।

1960 में टीम स्पर्धाएं आयोजित नहीं हुईं एवं 1964 में रजत पदक विजेता स्विस टीम में एक महिला थी। 1968 में सभी पदक विजेता टीमों में महिला प्रतिनिधित्व था। 1972 में स्वर्ण व रजत पदक विजेता टीमों में महिलाएं थीं तथा कांस्य पदक विजेता स्वीडिश टीम की सभी सदस्य महिलाएं थीं।

1976 में भी स्वर्ण पदक विजेता जर्मन टीम में एक महिला थी तथा रजत व काँस्य टीमों की सभी टॉप स्कोरर महिलाएं ही थीं। 1980 में स्वर्ण पदक विजेता टीम में एक, 1984 में रजत विजेता टीम में दो तथा कांस्य विजेता टीम की तीनों टॉप स्कोरर महिलाएं थीं।

1984 में प्रथम आठ टीमों में कम से कम एक महिला अवश्य थी। 1988 जर्मन ऑल विमेन टीम ने स्वर्ण पर कब्जा किया और कुल नौ पदक विजेताओं में से सात महिलाएं थीं। यही नहीं प्रथम आठ टीमों में कम से कम दो महिलाएं अवश्य थीं।

वर्ष 1996 से 2020 तक आयोजित एकल स्पर्धा के सारे पदक महिलाओं की झोली में ही गए हैं। जर्मनी की इसाबेल वर्थ ने 1992 से 2020 के बीच 7 स्वर्ण व 5 रजत के साथ एकल व टीम स्पर्धा में सर्वाधिक 12 पदक जीते हैं। टीम स्पर्धा के 6 स्वर्ण पदक एक ओलंपिक रिकार्ड है। नीदरलैंड की एंकी वैन ग्रुस्वेन ने 1988 से 2012 के बीच एकल व टीम स्पर्धा में 3 स्वर्ण, 5 रजत व 1 कांस्य के साथ कुल 9 पदक जीते। उन्होंने एकल स्पर्धा में 3 स्वर्ण व 1 रजत अपने नाम किया है।

2020 के टोक्यो ओलंपिक में ड्रेसाज की एकल स्पर्धा में तीनों पदक महिलाओं ने जीते थे और टीम स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली टीम की तीनों सदस्य तथा रजत और कांस्य पदक विजेता टीमों की दो-दो सदस्य महिला थीं। बाकी दोनों स्पर्धाओं, जम्पिंग व इवेन्टिंग में भी महिलाओं का दबदबा देखने को मिला।

इवेन्टिंग की एकल स्पर्धा में जर्मन जूलिया क्रज्वेस्की ने स्वर्ण पदक जीता तथा टीम स्पर्धा का गोल्ड जीतने वाली ब्रिटिश टीम की एक सदस्य महिला थी। जम्पिंग की टीम स्पर्धा का गोल्ड जीतने वाली स्वीडिश टीम की एक सदस्य तथा रजत विजेता अमरीकी टीम की दो सदस्य महिलाएं थीं। 1964 के बाद से महिलाओं के लिए खोली गयी इन दोनों स्पर्धाओं की एकल व टीम प्रतियोगताओं में से केवल एकल जम्पिंग ही एक है, जिसमें महिला विजेता नहीं बन सकी है।

पेरिस 2024 में अपने पुरुष समकक्षों से प्रतिस्पर्धा करते हुए और अधिक महिलाएं घुड़सवारी में स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य रखेंगी। गत विजेता जेसिका वॉन ब्रेडो-वन्र्डल, शार्लो फ्राई और तीन बार की स्वर्ण पदक विजेता शार्लो डुजार्डिन ड्रेसाज में दावेदार होंगी। जबकि विश्व नंबर 2 और वर्तमान यूरोपीय बैडमिंटन और पाउ चौंपियन रोस कैंटर से इवेंटिंग में शीर्ष पर पहुंचने की उम्मीद है।

यह बहुत संभव है कि जंपिंग में पोडियम पर पहुंचने के लिए एक महिला प्रतिभा उभर कर सामने आए, जिससे कि तीनों स्पर्धाओं की पदक विजेताओं में कम से कम एक महिला अवश्य होगी।
वर्षों तक पुरुष आधिपत्य में रहे इस खेल की ड्रेसाज स्पर्धा पर महिलाओं की पकड़ अब इतनी मजबूत है कि अब पुरुषों को महज पायदानों से ही संतोष करना पड़ता है क्योंकि पदक तो अब उन्हें कभी-कभार ही नसीब हो पाता है, चाहे वह एकल स्पर्धा हो या टीम गेम।

लेखक परिचय:

नाम: डॉ.शालीन शर्मा
संप्रति: खेल पत्रकारिता से करियर शुरू करने के बाद शासकीय सेवा में पहुंचे और वर्तमान में लेखन को हॉबी के रूप में अपनाकर द ग्रिप न्यूज के लिए खेलों से जुड़े आलेख लिख रहे हैं।

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