Olympic : स्वतंत्र भारत के रूप में 1948 में पहली बार ओलंपिक में खेला था भारत, ब्रिटिश इंडिया की ओर से 1900 में पहली बार जीते थे दो रजत

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-ओलंपिक में भारत की यात्रा

किश्त-4

आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत एथेंस ग्रीस में वर्ष 1896 में हुई। उस समय भारत ब्रिटिश राज के अधीन था और ऐसे में खेलों में सहभागिता दूर की बात थी। प्रारंभिक काल में खेलों का आयोजन कई महीनों तक चलता था व प्रतिभागिता के कोई विशेष नियम नहीं थे। वर्ष 1900 के खेलों में भारत में जन्मे ब्रिटिश मूल के नॉर्मन प्रिचार्ड ने संयोग से हिस्सा लिया। वे उस समय पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे। प्रिचार्ड ने ब्रिटिश इंडिया की ओर से भाग लिया और इस प्रकार वे ओलंपिक में किसी एशियाई देश का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले खिलाड़ी बने। उन्होंने 200 मीटर की फर्राटा एवं 200 मीटर बाधा दौड़ में भाग लिया। दोनों स्पर्धाओं में दूसरे स्थान पर रहते हुए उन्होंने दो रजत पदक जीते। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ आज भी इन दोनों पदकों को भारत द्वारा जीते गए पहले पदकों के रूप में मान्यता देता है।

भारत ने इसके बाद के खेलों में प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1920 में एंटवर्प बेल्जियम में आयोजित खेलों में शिरकत की। तब से वह हर आयोजन में हिस्सेदारी करता आ रहा है। 1920 में भारतीय दल में कुल 5 सदस्य थे। इनमें 3 एथलीट व 2 पहलवान शामिल थे। पुरुष मैराथन में पी.डी. चौगुले 2 घंटे 50 मिनट 45.4 सेकंड के साथ 19 वें स्थान पर रहे। पहलवान दिनकर राव शिंदे फ्री-स्टायल फेदरवेट केटेगरी में कांस्य पदक के लिए हुए मैच में हार कर चौथे स्थान पर रहे। 1924 में भारतीय दल में 14 सदस्य थे, जिन्होंने एथलेटिक्स व टेनिस की स्पर्धाओं में भाग लिया। उल्लेखनीय है कि इस दल में नोरा पॉली और मेहरी टाटा 2 महिला टेनिस खिलाड़ी भी थीं। 1928 में 22 सदस्यीय दल में 15 हॉकी टीम के थे। जयपाल सिंह मुंडा की अगुआई वाली इस टीम में महान ध्यान चंद भी थे और भारत ने अपने पहले ही प्रयास में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया जो अगले 28 साल तक बरकरार रहा।


1932 में हॉकी की सफलता को दोहराने के साथ-साथ भारत ने पहली बार तैराकी में भी एक प्रतियोगी भेजा था। हॉकी टीम के सदस्य डिकी कार ने 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में भी हिस्सा लिया था। 1936 में भारतीय दल में 27 सदस्य थे, जिन्होंने 4 खेलों में भाग लिया। हॉकी स्वर्ण के अतिरिक्त भारतीय खेल कबड्डी, खो-खो व मलखम्भ का प्रदर्शन भी यहां किया गया था। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने उस समय इन खेलों को डिमॉन्सट्रेशन स्पोट्र्स में सम्मिलित नहीं किया था।

 

1948 में भारत पहली बार एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में शामिल हुआ था। तब 79 खिलाडिय़ों ने 10 खेलों के 39 इवेंट्स में भाग लिया। हॉकी में जीता स्वर्ण स्वतंत्र भारत का पहला पदक था। 1952 में 64 सदस्यीय दल में 4 महिलाएं भी थी, जिन्होंने एथलेटिक्स व तैराकी में भाग लिया। भारत ने कुल 11 खेलों के 42 इवेंट्स में भाग लिया तथा हॉकी स्वर्ण के अलावा पहली बार भारत को एक और सफलता के.डी. जाधव के कांस्य पदक के रूप में प्राप्त हुई। उन्होंने फ्री-स्टायल बेंटमवेट केटेगरी में यह उपलब्धि हासिल की।

 

1956 में भारत ने हॉकी के फायनल में पाकिस्तान को हरा कर लगातार छठवां स्वर्ण पदक जीता। भारतीय फुटबाल टीम कांस्य पदक के लिए हुए मैच में बुल्गारिया से हार कर चौथे स्थान पर रही।

 

1960 में हॉकी में भारत फायनल में पाकिस्तान से 1-0 से हार कर दूसरे स्थान पर रहा और उसे रजत से ही संतोष करना पड़ा। पुरुषों की 400 मीटर दौड़ में मिल्खा सिंह 45.6 सेकंड के समय के साथ चौथे स्थान पर रहे।

 

1964 में भारत ने फायनल में पाकिस्तान को 1-0 से हरा कर स्वर्ण पदक फिर से हासिल किया। पुरुषों की 110 मीटर बाधा दौड़ में गुरबचन सिंह रंधावा 5 वें स्थान पर रहे।

 

1968 तथा 1972 में भारत को हॉकी में कांस्य से ही संतोष करना पड़ा व 1976 में उसने यह पदक भी गंवा दिया। यह पहली बार था कि भारत बिना पदक के लौटा।

 

1980 में भारत ने फिर से हॉकी गोल्ड जीता, महिला हॉकी टीम अपने पहले प्रयास में चौथे स्थान पर रही। मैराथन में हरि चंद 2 घंटे 22 मिनट 8 सेकंड के समय के साथ 31वें स्थान पर रहे, वहीं 20 किलोमीटर की पैदल चाल में रंजीत सिंह 1 घंटा 38 मिनट 27.2 सेकंड के समय के साथ 18 वें स्थान पर रहे।

 

1984 में भारत को कोई मेडल तो नहीं मिला लेकिन महिला एथलीट्स ने अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई। पी.टी. उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं और मात्र 1 सेकंड के सौंवे हिस्से से पदक से चूक गईं। उनसे पहले शाइनी अब्राहम 800 मीटर दौड़ में सेमी-फायनल के लिए क्वालीफाई कर किसी ओलंपिक स्पर्धा में ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनी। 4 गुणा 400 मीटर की रिले दौड़ में उषा, शाइनी, एम.डी. वालसम्मा और वंदना राव की टीम ने फायनल के लिए क्वालीफाई कर इतिहास बनाया।

 

1988 व 1992 में खाली हाथ लौटने के बाद 1996 में भारत एक कांस्य पदक जीतने में सफल रहा। टेनिस में लिएंडर पेस ने ब्राजीली फर्नांडो मेलीगिनी को हरा कर भारत को यह सफलता दिलाई। यह 44 साल बाद किसी भारतीय को मिलने वाला व्यक्तिगत पदक था तथा 1980 में मिले हॉकी टीम के स्वर्ण पदक के बाद 16 सालों में पहली पदकीय सफलता थी।

 

वर्ष 2000 में भारत की पहली भागीदारी के सौ साल बाद किसी महिला को पदक मिला। कर्णम मल्लेश्वरी 69 किलोग्राम वर्ग में कुल 240 किलो वजन उठा कर तीसरे स्थान पर रहीं और कांस्य पदक हासिल किया।

 

2004 के खेलों में भारतीय दल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहले से अधिक था। ओलंपिक दल में कुल 73 सदस्यों में से 25 महिलाएं थीं। शूटिंग के डबल ट्रैप इवेंट में कैप्टन राज्यवर्धन सिंह राठौर ने रजत पदक जीता, जो भारत की एकमात्र सफलता थी। हालांकि कई भारतीय मैडल के बहुत करीब रहे, पुरुष टेनिस के डबल्स में लिएंडर पेस व महेश भूपति की जोड़ी ब्रॉन्ज मैडल मैच हार कर चौथे स्थान पर रही। जबकि एन. कुंजरानी देवी 48 किलोग्राम वर्ग में कुल 190 किलो वजन उठा कर चौथे स्थान पर रहीं। अंजू बॉबी जॉर्ज लम्बी कूद में 6.83 मीटर के राष्ट्रीय रिकार्ड के साथ 5 वें स्थान पर रहीं।

 

2008 में भारत पहली बार हॉकी के लिए क्वालीफाई करने में असफल रहा था, किंतु यहां उसका प्रदर्शन अब तक का सर्वश्रेष्ठ था। 10 मीटर एयर रायफल में अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पदक जीता। यह किसी भारतीय का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक था। पहलवान सुशील कुमार 66 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक तथा मुक्केबाज विजेंदर सिंह मिडलवेट केटेगरी में कांस्य पदक जीतने वाले अन्य दो भारतीय थे। भारत को पहली बार तीन पदक मिले थे।

 

2012 में भारत ने यह संख्या दुगनी कर ली। दो भारतीय महिलाएं पहली बार मैडल विजेता बनीं। विजय कुमार शूटिंग में तथा सुशील कुमार कुश्ती में रजत जीते तो गगन नारंग शूटिंग में तथा योगेश्वर दत्त ने कुश्ती में कांस्य पदक हासिल किया। शटलर साइना नेहवाल और बॉक्सर मैरी कॉम ने कांस्य पदक जीत कर नया इतिहास रचा।

2016 में भारत ने अब तक का सबसे बड़ा दल भेजा। इस दल के 117 सदस्यों में 63 पुरुष व 54 महिलाएं शामिल थीं। सफलता केवल महिलाओं के हाथ लगी। शटलर पी.वी. सिंधु ने रजत पदक जीत कर इतिहास बनाया, वे पहली महिला रजत विजेता और सबसे युवा व्यक्तिगत पदक विजेता बनीं। साक्षी मलिक ने 58 किलोग्राम वर्ग में कुश्ती का कांस्य पदक जीता। इनके अलावा कई खिलाड़ी बहुत कम अंतर से पदक से चूक गए। टेनिस के मिश्रित युगल में सानिया मिर्जा व रोहन बोपन्ना की जोडी, जिमनास्ट दीपा कर्माकर और शूटर अभिनव बिंद्रा अपने-अपने मुकाबलों में चौथे स्थान पर रहे।

2020 भारत का ओलंपिक में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा। खिलाडिय़ों ने 1 स्वर्ण, 2 रजत व 4 कांस्य सहित कुल 7 पदक अपने नाम किए। नीरज चोपड़ ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता। यह एथलेटिक्स में भारत का पहला स्वर्ण था। मीरा बाई चानू ने भारोत्तोलन में तथा रवि कुमार दाहिया ने कुश्ती में रजत अपने नाम किया। कुश्ती में ही बंजरंग पूनिया कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। शटलर पी.वी. सिंधु और बॉक्सर लवलीना बॉरगोहिन ने भी कांसा जीता। सिंधु दो व्यक्तिगत पदक जीतने वाली पहली महिला बनीं, केवल पहलवान सुशील कुमार ही उनसे पहले यह उपलब्धि हासिल कर सके हैं। भारतीय हॉकी टीम ने भी 40 साल का सूखा समाप्त कर कांस्य पदक जीता। महिला हॉकी टीम भी ब्रॉन्ज मैडल मैच में हार कर चौथे स्थान पर रही। इनके अतिरिक्त गोल्फ में अदिति अशोक और कुश्ती में दीपक पूनिया बहुत कम अंतर से पदक चूक गए।

 

अब तक इतने पदक जीते हैं भारतीय खिलाडिय़ों ने

भारत ने अब तक कुल 35 पदक जीते हैं, जिनमें 10 स्वर्ण, 9 रजत और 16 कांस्य हैं। पुरूष हॉकी में हमारी टीम ने 8 स्वर्ण, 1 रजत व 3 कांस्य के साथ कुल 12 पदक जीतें हैं, जो कि एक रिकार्ड है। हॉकी के बाद कुश्ती में सबसे ज्यादा 7 पदक आयें हैं, उसके बाद, शूटिंग में 4, एथलेटिक्स, बैडमिंटन व बॉक्सिंग में 3-3, भारोत्तोलन में 2 और टेनिस में एक पदक जीता है।

हॉकी खिलाड़ी लेस्ली क्लॉडियस और उधम सिंह के नाम 3-3 स्वर्ण व 1-1 रजत के साथ 4-4 पदक हैं। इनके अलावा पांच अन्य खिलाडिय़ों को 3-3 स्वर्ण पदक जीतने का गौरव हासिल है। 1928 से 1972 के बीच हॉकी टीमों का हिस्सा रहे 37 खिलाडिय़ों के नाम एक से अधिक पदक है। 1928 से 1980 के बीच भारत ने 12 ओलंपिक आयोजनों में 11 बार हॉकी में पदक हासिल किए। यह हॉकी खेल में भारत का स्वर्ण युग था।

 

इस बार होगी नए युग की शुरुआत

2024 में अब तक 11 खेलों में 43 पुरुष व 23 महिलाओं सहित कुल 66 भारतीय अपनी- अपनी स्पर्धाओं के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं। इसमें पुरुष हॉकी टीम भी शामिल है। अन्य खेलों में रिक्त स्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा जारी है। कई स्पर्धाओं में क्वालीफिकेशन की कट ऑफ डेट 30 अप्रैल व उसके भी बाद होने से अंतिम स्थिति खेलों के शुभारंभ से कुछ दिन पहले ही साफ होगी। उम्मीद है कि भारत इस बार अपने पुराने रिकार्ड में सुधार कर अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर एक नए युग की शुरुआत करेगा।

लेखक परिचय
नाम: डॉ.शालीन शर्मा
संप्रति: खेल पत्रकारिता के साथ करियर की शुरुआत करने के बाद शासकीय सेवा में गए। वर्तमान में सहायक संचालक के पद पर पदस्थ हैं। लेखन को हॉबी के रूप मेें अपनाकर द ग्रिप के लिए खेल से संबंधित विशेष आलेख लिख रहे हैं।

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