हनुमान जयंती विशेष
-डबरा के नजदीक पठा-पनिहार में है संकट मोचन का मंदिर
-नृत्य मुद्रा में स्थित है हनुमान जी का विशाल विग्रह
-जानिए अंचल में यहां भी हैं हनुमान जी के सिद्ध मंदिर
हनुमान जी का नाम मन में आते ही हमारी दृष्टि मलिनता छोड़कर शालीनता की ओर मुड़ जाती है। कहा जाता है कि कलियुग में हनुमान जी और मां दुर्गा की कृपा सदैव भक्तों पर बनी रहती है। लगभग हर गांव में छोर पर कम से कम एक मंदिर हनुमान जी का और एक मंदिर मां दुर्गा का होता ही है। आस्था है कि हनुमान जी और मां दुर्गा का मंदिर गांव के छोर पर हो तो विपत्तियां-आपदाओं से सुरक्षा बनी रहती है।
ग्वालियर अंचल में ददरौआ हनुमान मंदिर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, यहां लोगों के रोग दूर होते हैं इसलिए इन्हें डॉक्टर हनुमान भी कहा जाता है। ग्वालियर-झांसी हाइवे पर जौरासी हनुमान मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का खास केन्द्र है। धुवां के हनुमान के नाम से प्रसिद्ध हनुमान जी का मंदिर वैराग्य भाव प्रदान करता है। मद्दा खो स्थित हनुमान जी के मंदिर में शुचिता का भाव अपने आप प्रकट होने लगता है।
इसके अलावा कुछ स्थानों पर बालाजी धाम के नाम से बीते कुछ वर्षों में स्थापित मंदिर भी भक्तों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं। अगर ग्वालियर शहर की बात करें तो टेकरी सरकार, तलवार वाले हनुमान जी, मंशा पूर्ण हनुमान जी आदि लोक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां हर मंगलवार-शनिवार भक्तों का तांता लगता है। इन प्रसिद्ध मंदिरों पर तो भक्तों की आस्था है ही, आज हनुमान जयंती के अवसर पर हम आपको अंचल के ऐसे मंदिरों की यात्रा कराएंगे जो अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध हैं, लेकिन ये स्थान किसी न किसी चमत्कारिक घटना के कारण ग्रामीणों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं।
पहली कड़ी में हम ग्वालियर-झांसी रोड पर ही टेकनपुर-डबरा के बीच समूदन से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पठा-पनिहार में स्थित हनुमंत निवास शांति आश्रम में नृत्य मुद्रा में विराजे हनुमान जी के मंदिर की विशेषताएं बताएंगे। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर में विराजे हनुमान जी आपदा-विपदा से निजात दिलाते हैं। सच्चे भाव से दर्शन-पूजन से मनोकामना पूरी होती है।
यहां है मंदिर
ग्वालियर-डबरा के बीच अनंतपैठ रेलवे स्टेशन से करीब एक किलोमीटर दूर पठा-पनिहार रेलवे क्रॉसिंग से 500 मीटर दूर दक्षिण की ओर मंदिर स्थापित है। जबकि ग्वालियर-झांसी हाइवे पर बीएसएफ छावनी टेकनपुर से करीब चार किलोमीटर दूर समूदन से ग्राम पंचायत पठा पनिहार के लिए सड़क मार्ग है।
हरियाली से मन होगा प्रसन्न
मंदिर के चारों ओर बाउंड्री है। परिसर में हरियाली के लिए पेड़ लगे हैं। गर्मी में भी मंदिर परिसर में ठंडक का अहसास होता है। मंदिर की विशेषता यह है कि परिसर में मौजूद कुएं से अभी भी शीतल जल मिल रहा है। जबकि आसपास के लगभग सभी कुए सूख चुके हैं। भीषण गर्मियों में भी कुए के तल में जल रहता है।
यह है विशेषता
रामभक्त हनुमान का विग्रह यहां नृत्य मुद्रा में विद्यमान है। मंदिर में प्रवेश करते ही सात्विकता का अहसास होने लगता है। कितना भी मन अशांत हो परिसर में आते ही शांति महसूस होने लगती है। मंदिर में कोई चढ़ावा नहीं चढ़ाना पड़ता। मंदिर में दानपेटी नहीं रखी गई है। मंदिर परिसर में साधक के रूप में करीब 40 वर्ष तक पं. लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी ने साधना की। इनसे पूर्व यहां लगभग अनपढ़ लेकिन हनुमान जी के भक्त और ब्रह्मचारी नोनेलाल ने साधना की। इनके वंशज स्व. मदलाल त्रिवेदी करीब 50 वर्ष तक यहां के पुजारी रहे। वर्तमान में इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी के राजेन्द्र त्रिवेदी पुजारी हैं, इन्होंने शहरी जीवन को त्यागकर गांव में ही पूजा अर्चना को स्वीकार किया है।
यह है जनश्रुति
गांव के निवासी और पूर्व सरपंच जगदीश पालीवाल, महिपाल सिंह परिहार, अशोक श्रोत्रिय, श्यामसुंदर श्रोत्रिय, राधाकृष्ण सिंह राणा, नरेन्द्र्र सिंह राणा, भरत सिंह बघेल आदि ग्रामीण बताते हैं कि हनुमान जी का चमत्कार हमने अपने बुजुर्गों से सुना है। बुजुर्ग बताते हैं कि 60 या 70 वर्ष पुरानी बात होगी। गेहूं की फसल आने पर तब थ्रेसर नहीं चलते थे और बैलों से ही गेहूं को निकाला जाता है। गांव से दूर बने खलिहान में ही रात को लोग सोते थे। नजदीक ही सरपते का जंगल जैसा ही था। एक बार गांव के श्मशान के पास ही स्थापित एक खलिहान से गांव के एक परिवार के युवक को किसी अज्ञात शक्ति ने पास ही मौजूद तालाब में फैंक दिया था। गांव के लोग उसे ढूंंढते रहे बाद में वह कीचढ़ से लथपथ मंदिर में बैठा मिला। अज्ञात शक्ति का शिकार हुए युवक ने परिजन और ग्रामीणों को बताया किसी ने उसे गेंद की तरह उठाकर धुबियाई में फैंक दिया था। एक बंदर ने वहां से खींचकर निकाला और मंदिर में लाकर बैठा दिया। इसके बाद संबंधित परिवार ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। एक छोटी सी मढिय़ा को छोटे से मंदिर का रूप दिया गया।
धीरे-धीरे भव्य रूप में आ रहा परिसर
ग्रामीणों ने सहयोग से मंदिर परिसर को सुंदर बनाना शुरू कर दिया है। परिसर की तीन ओर से बाउंड़ी कराई गई है। कुए को संरक्षित करने के लिए ग्रामीणों का प्रयत्न जारी है। मंदिर परिसर में गांव के कुछ परिवारों के पूर्वजों का भी स्थान है। पुराने मंदिर की बजाय अब नया मंदिर बन गया है। इसके अलावा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर प्रांगण को खुला रखा गया है। परिसर के छोटे से हिस्से को ही सीमेंटेड किया गया है, अधिकतर हिस्सा कच्चा ही रखा गया है ताकि आधुनिकता के साथ-साथ मिट्टी से जुड़ाव महसूस होता रहे।
बहुत ही उपयोगी जानकारी धर्मबलम्बी लाभ उताएंगे
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