-हर हाल में वोट कबाडऩे रीति और नीति को भूल हो रही वैमनस्य की राजनीति
-लोकसभा के आठ विधानसभा क्षेत्रों में अलग-अलग हालात
धर्मेन्द्र त्रिवेदी
भारत की 543 लोकसभा सीटों में से एक ग्वालियर को तानसेन की नगरी कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां की हवा में संगीत घुला है। हालांकि, समय के साथ यह कहनात हवा में ही गुम हो गई है। वर्तमान स्थिति यह है कि तानसेन की इस भूमि पर बने राजनीतिक मंच पर जनता की परेशानियों का वास्तविक हल ढूंढने की बजाय जातियों का तानपूरा लेकर वैमनस्य का राग ज्यादा सामने आ रहा है। आठ विधानसभा सीटों में भाजपा और कांग्रेस की रस्साकसी धीरे-धीरे चरम पर पहुंच रही है। सात मई को मतदान होना है और दोनों ही दल इस बार भाषणों में विकास और योजनाओं की बात कर रहे हैं, लेकिन जमीन पर लगभग पूरा चुनाव जातिगत समीकरण को साधने पर फोकस होकर रह गया है। कहीं रियासत और सियासत का मेल दिख रहा है तो कहीं। जातिगत ज्यादती के तुष्टिकरण से उपजा गुस्सा अब विरोध के रूप में सामने आ रहा है। पिछले कुछ दिनों में कुछ छुटभैये या यूं कहिये कि राजनीति में आए नए-नए उत्साही अपने नेता के सबसे खास बनने की ख्वाहिश में ऐसी बातें कह जा रहे हैं जिससे कहीं दूर सुलग रही जातिगत वैमनस्य की आग को और हवा मिल रही है। इस सबके बीच अंचल के वास्तविक मुद्दे गौण होते दिख रहे हैं। दोनों ही मुख्य दलों के नेता मंच से अपनी-अपनी पीठ थपथपाकर औपचारिकता पूरी कर रहे हैं, अभी तक किसी भी नेता ने न तो पर्यावरण बचाने की बात की है और न ही तेजी से गिर रहे भूजल स्तर को बेहतर करने के लिए अपना दृष्टिकोण रखा है।
ग्वालियर-चंबल अंचल के पारिस्थितिकी तंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे अवैध उत्खनन को लेकर भी भाजपा और कांग्रेस नेता सीधे मुंह कुछ बोलने को तैयार नहीं हो रहे। सारी बुराई-भलाई के बीच मतदाता को सात मई को होने वाले मतदान का इंतजार है। प्रशासन और पुलिस ने अपने स्तर पर मतदान कराने की पुख्ता तैयारी कर ली है और नेता मतदाता को रिझाने के लिए हर हथकंडे अपनाने की फिराक में हैं। अंचल ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में शुमार ग्वालियर लोकसभा सीट पर इस बार एक ओर जहां विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के समर्थक भारत ङ्क्षसह कुशवाह लाव लश्कर के साथ चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के प्रवीण पाठक आंतरिक अंतर्विरोध से जूझते हुए क्षेत्रीय जनता के बीच पहुंच रहे हैं। दोनों ही ओर से चुनावी शतरंज की बिसात पर पैदल,घोड़े,हाथी,ऊंट,वजीर उतार दिए गए हैं, अब परिणाम जो भी हो लेकिन यह तय है कि भारतीय राजनीति में लगभग अनजान दोनो चेहरों के बीच हो रही जंग दिलचस्प रहेगी।
रियासत और सियासत का भी हो रहा मेल
ग्वालियर की आठों विधानसभा सीट पर सिंधिया राजघराने का प्रभाव हमेशा रहा है। इनके अलावा राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह भी अपना दबदबा बनाने की कोशिश हमेशा से करते आए हैं। क्षेत्रीय नेताओं की बात करें तो सिंधिया परिवार के अलावा नरेन्द्र सिंह तोमर, वीडी शर्मा, डॉ. गोविंद सिंह, डॉ. नरोत्तम मिश्र, अनूप मिश्रा, माया सिंह, जयभान सिंह पवैया, अशोक सिंह, रामसेवक बाबूजी, प्रद्युम्नसिंह तोमर, डॉ. सतीश सिकरवार, मुन्नालाल गोयल जैसे नेता जनता की जुबान पर रहते हैं। राजा-महाराजा और जनता के बीच से निकले नेताओं की रियासत बनाए रखने की सियासत ने अंदरखाने और बाहरी दोनों ही तरह के गठजोड़ बना लिए हैं। कार्यकर्ता आपस में उलझ रहे हैं और नेता मंच से भाषण देने तक सीमित हैं।
इनका वोट करेगा फैसला
-लोकसभा के करैरा, पोहरी, डबरा,भितरवार,ग्वालियर दक्षिण,ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में 11 लाख 32 हजार 662 पुरुष 10 लाख 7 हजार 571 महिला और 64 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। इनके मत से 7 मई को प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा।
जातियों में सेंध लगाकर मत बढ़ाने की कोशिश
ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा लगभग 4 लाख मतदाता ओबीसी समुदाय का है। 3 लाख ब्राह्मण हैं और 2 लाख क्षत्रिय हैं। इनके अलावा लगभग 2 लाख गुर्जर, 2 लाख यादव/किरार हैं। 1.75 लाख आदिवासी और 60 हजार के आसपास मराठी भाषी मतदाता हैं। इनमें से अगर बल्क वोट को छोड़ दिया जाए तो लगभग हर चुनाव में 1.2 से लेकर 2.5 प्रतिशत तक गतिशील वोट ही पूरे चुनाव की दिशा तय करता है। राजनीतिक दल जातिगत समीकरण को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए एक ओर जहां समर्थक नेताओं के माध्यम से उनकी जाति में सेंध लगवाई जा रही है तो दूसरी ओर प्रचार-प्रसार के माध्यम से भी लुभाया जा रहा है।
चुनौती दोनों ओर बरकरार
लोकसभा 2024 के लिए हो रहे इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जहां मोदी सरकार की उपलब्धियों और मोदी की गारंटी का हवाला देकर मतदाताओं का विश्वास हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मंहगाई, बेरोजगारी सहित अन्य मुद्दों के सहारे जनता के बीच जा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में अभी तक प्रदेश के सीएम से लेकर केन्द्रीय मंत्री सिंधिया, विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और देश के दूसरे नेता सभा और बैठकें ले चुके हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के लिए प्रचार करने के लिए अभी तक बड़ेे चेहरों में सचिन पायलट ही सीधे तौर पर आए हैं। इनके अलावा दूसरा कोई बड़ा दिग्गज लगातार साथ देता नहीं दिख रहा है। इसके बावजूद दोनों ही दल के प्रत्याशियों के बीच जनता का समर्थन हासिल करने की होड़ लगी है।