सुलोचना,  सिर्फ इसलिए हारी क्योंकि उसका पति अधर्म के साथ था

सीरीज: रामचरित मानस के पात्र

-यह थी सुलोचना की लक्ष्मण को सीख: सुमित्रानंदन, मेघनाद के वध पर गर्व न करना, यह दो पतिव्रताओं के पातिव्रत और अन्न से मिली वृत्ति का है परिणाम
-पति की अनन्य उपाासिका सुलोचना

सुमित्रानंदन, तुम भूलकर भी गर्व न करना कि मेघनाद का वध मैंने किया है। मेघनाद को धराशायी करना विश्व की किसी शक्ति के वश की बात नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। लक्ष्मण, आपकी पत्नी उर्मिला भी पतिव्रता हैं और मैं, सुलोचना अपने पति के चरणों में अनुरक्ति रखने वाली अनन्य उपासिका हूं। लेकिन मेरे पति पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिए युद्ध में उतरे थे, बस यही एक कारण रहा है, जिसकी वजह से ये मेरे जीवन धन परलोक सिधारे हैं। यह कहकर पति का छिन्न शीश लिए सुलोचना का ह्रदय द्रवित हो उठा और उनकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी।

 

रामचरित मानस के पात्रों में इस बार हम बात कर रहे हैं, मेघनाद की पत्नी सुलोचना की। वासुकि नाग की पुत्री सुलोचना ने मेघनाद का वरण किया था। रामायण का यह एक ऐसा पात्र है, जिसके बारे में सबसे कम जानकारी पौराणिक साहित्य में उपलब्ध है। जो संक्षिप्त उल्लेख मिलता है, उसके हिसाब से सुलोचना ही एक ऐसी स्त्री थी जिसकी सहायता से पाताललोक में प्रवेश किया जा सकता था। रावण ने अपने बहनोई और सूर्पनखा के पति को दंड देने के लिए मेघनाद के माध्यम से सुलोचना की मदद ली थी। पति मेघनाद अधिकतर समय युद्ध में रहा तो सुलोचना का अधिकतम समय शिवभक्ति में ही बीता। लंका विजय के समय जब लक्ष्मण का मेघनाद के साथा युद्ध हुआ तो मेघनाद को वीरगति मिली। लक्ष्मण ने एक पत्नी व्रत धारी मेघनाद के सिर को भूमि पर नहीं गिरने दिया। मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में लाया गया। पति की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद सुलोचना ने रावण से अनुरोध किया कि राम के पास जाकर पति का शीश लेकर आए, लेकिन रावण ने तैयार नहीं हुआ। रावण ने सुलोचना को स्वयं जाकर शीश लाने की सलाह दी।

 

राम शिविर में सुलोचना

पति के पिता की आज्ञा मिलने के बाद सुलोचना राम शिविर में पहुंची। सभी की मुखाकृति प्रश्र से भरी थी। सुलोचना ने जब श्रीराम की ओर देखा तो उनके भावों को समझ गयी। किसी ने कुछ न कहकर सुलोचना ने कहा कि “यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे। सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा।” यह देख सभी अचंभित हो गए। राम सहित शिविर में मौजूद सभी योद्धाओं ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। शिविर से वापस लंका जाने से पहले सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना करते हुए कहा कि “भगवन, आज मेरे पति की अंतिम संस्कार होना है और मैं उनकी सहचरी भी उनके साथ ही जा रही हूं, इसलिए इस समय के लिए युद्ध बंद रहे। राम ने सुलोचना की बात मानी और अंतिम क्रिया के दिन युद्ध न करने का वचन दिया। सुलोचना लंका पहुंची और फिर पति का शीश गोद में लेकर पति के साथ ही शरीर छोड़ दिया।

 

भुजा ने दिया प्रमाण

लक्ष्मण के बाणों से प्राण छोड़ चुके मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ी और सीधे सुलोचना के पास आकर गिरी। सुलोचना यह देख चकित हो गई लेकिन उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। सुलोचना सोच रहीं थीं कि यदि यह किसी अन्य पुरुष की भुजा हुई और उसने छू लिया तो पर पुरुष स्पर्श का दोष लगेगा। इधर, एक पत्नी व्रती मेघनाद की भुजा ने खुद ही लिख दिया कि ” प्राण प्रिये यह भुजा मेरी ही है, युद्ध भूमि में श्री राम के भााई लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ और मुझे पराजय हासिल हुई। पराजय की मुख्य वजह शौर्य के साथ लक्ष्मण का व्रत है। एक ओर जहां लक्ष्मण ने अन्न, निद्रा और पत्नी का त्याग करके वनवासी भाई की सेवा का व्रत लिया है। दूसरी ओर लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला भी व्रती है।

 

बहू सुलोचना

मेघनाद की भुजा में पकड़ी लेखनी से सारा वृतांत सामने आने के बाद सुलोचना व्याकुल होकर विलाप करने लगी। पुत्र वधु का विलाप सुन लंकापति रावण ने राम की सेना को नष्ट करने के दंभ भरे वचन कहे। सुलोचना बोली:-पिताश्री राम सेना को नष्ट करने से क्या मेरे पति का जीवन लौट आएगा, आपके युद्ध से मुझे क्या लाभ होगा। हजारों या करोड़ों शीश भी क्या मेरे पति के शीश के अभाव की पूर्ति कर सकेंगे। इस पर रावण ने कहा-बेटी पति का शीश और शव प्राप्त करने के लिए तुम्हें निश्चय ही राम के शिविर में जाना चाहिए। जिस शिविर में हनुमान, इंद्रिय विजयी लक्ष्मण और एक पत्नी व्रत धारी राम मौजूद हैं, वहां तुम्हें निर्भय होकर जाना चाहिए। इन सभी वीरों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटाई जाओगी।

 

राम-सुलोचना संवाद

सुलोचना जब राम के शिविर में पहुंचीं तो श्री राम खड़े हो गए। अगवानी के लिए वे स्वयं आए और फिर कहा कि “देवी तुम्हारे पति विश्व के श्रेष्ठतम योद्धा रहे हैं,उनके पराक्रम के समक्ष वीरों का शौर्य भी कम है। किंतु विधि का लिखा मिटाया नहीं जा सकता। सुलोचना ने राम के वचन सुने और विनय करने लगी। राम ने उन्हें बीच में टोक दिया और बोले कि मुझे लज्जित न करो, पतिव्रता नारी की महिला अनंत है, उसकी शक्ति से किसी की तुलना नहीं हो सकती। मैं जानता हूं कि तुम परम सती हो, तुम्हारे सतीत्व के समक्ष पूरा विश्व का सामर्थ भी कम है। सुलोचना ने आंसुओं के साथ राम की ओर देखा और फिर बोलीं कि “राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिए यहां आई हूं।

पति का शीश आया तो सुलोचना बिलखने लगी और लक्ष्मण की ओर देखते हुए बोलीं कि हे सुमित्रानंदन, भूलकर भी गर्व मत करना कि मैंने मेघनाद का वध किया है, मेघनाद को पराजित करने की शक्ति विश्व के किसी योद्धा में नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। आपकी पत्नी भी पतिव्रता है और मैं भी पति के चरणों में अनुरक्ति रखने वाली अनन्य उपासिका हूं। मेरे पति एक पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और अधर्म के लिए युद्ध में उतरे जो उनकी पराजय का कारण बना।

लेखक परिचय:
नाम: राधा शर्मा
संप्रति: शासकीय विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। शौकिया तौर पर कविता, कहानी और स्तंभ लेखन कर रही हैं। मैं नदी हूं शीर्षक से कविता संकलन प्रकाशित हो चुका है।

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