-संतुलित उर्वरक का उपयोग हो तो बढ़ती है पैदावार
ग्वालियर। अगर पौधे की ग्रोथ बेहतर चाहिए तो खाद का छिड़काव हमेशा जड़ के आसपास ही करना चाहिए। जमीन पर खाद फैंकने से खाद की अधिकांश मात्रा पौधे की जड़ तक पहुंचती ही नहीं है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नाइट्रोजन युक्त खाद एक बार में न दें बल्कि दो या तीन बार में जरूरत के हिसाब से छिड़काव करें। इसके साथ ही खाद देते समय भूमि की नमी भी जरूर देखें क्योंकि नमी बेहद जरूरी है। पौधे की जड़ें भी ठोस की बजाय घोल के रूप में ही पोषक तत्व ग्रहण करती हैं। अगर फसल बड़ी हो गई है तो उर्वरक या खाद का प्रयोग हमेशा घोल बनाकर ही करना चाहिए। नाइट्रोजन, स्फुर, पोटाश, यूरिया, डीएपी, पोटेशियम सल्फेट पानी में घोलकर देने से यह सीधे जड़ तक पहुंचता है।
गेहूं की फसलें काटने के बाद किसान ने आने वाले समय में धान आदि फसलों की तैयारी शुरू कर दी है। इस महीने खेतों को साफ किया जाएगा। इसके बाद पहली बारिश होते ही कल्टीवेट किया जाएगा और फिर धान के लिए खेत तैयार किए जाएंगे। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को वर्तमान में जैविक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए। जैविक खेती की पैदावार बढऩे से न सिर्फ भूमि की उर्वरता बढ़ेगी बल्कि उपभोक्ता को भी स्वास्थ्य हानि नहीं पहुंचेगी। जैविक खेती के लिए गोबर खाद, कंपोस्ट या हरी खाद प्रयोग किया जाए तो बेहतर रहता है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राज सिंह कुशवाह का कहना है कि फसलों की अनावश्यक सिंचाई नहीं करनी चाहिए। अगर बगैर जरूरत के खेतों को पानी से भर दिया जाए तो उर्वरक रिसकर जमीन के नीचे बह जाते हंै। खाद के उपयोग की जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि समय-समय पर किए गए प्रयोगों से यह बात साबित हो चुकी है कि अगर खेतों से अधिकत्तम उत्पादन चाहिए तो उर्वरकों का संतुलित व समन्वित उपयोग अनिवार्य है। एक ही तरह के उर्वरकों का उपयोग करने से फसलों को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। कृषकों को मिट्टी की प्रकृति को ध्यान में रखकर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये । ऐसा करके किसान उर्वरकों की खपत काफी कम कर सकते हैं।
फसलों में उर्वरकों का उपयोग करने से पहले यह जानना जरूरी है कि मिट्टी की प्रकृति कैसी है अर्थात मिट्टी भारी है या हल्के किस्म की। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब भूमि में उर्वरकों का उपयोग किया जाता है तो बड़ा हिस्सा निचली सतह पर चला जाता है, जिसका कोई उपयोग नहीं हो पाता। बलुई या हल्की मिट्टी में नत्रजनधारी उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट, कैल्शियम नाइट्रेट आदि का रिसाव चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए, हल्की मिट्टी में नत्रजनधारी उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, अन्यथा फसलों को जरूरत के मुताबिक उर्वरक प्राप्त नहीं होंगें और उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा ।
खड़ी फसल में उर्वरकों का प्रयोग तब करना चाहिये जब खेत की मिट्टी हलकी गीली हो और पैर का वजन सह सके। उर्वरक का उपयोग करने से पहले खरपतवार भी निकाल देना चाहिए। खरपतवार के रहते खाद का उपयोग किया तो वे भी उर्वरकों से पोषक तत्व ग्रहण कर लेते हैं और उत्पादन क्षमता घट जाती है। उर्वरकों का उपयोग मृदा के पीएच मान के आधार पर ही करना चाहिये, क्योंकि सभी उर्वरक हर प्रकार की जमीन में उपयुक्त नहीं होते।