भिण्ड: बढ़ते तापमान के साथ जल संकट ,20 फीट खिसका भू-जल स्तर

– बंद पेयजल योजनाओं को शुरु करने में परेशानी, निजी बोर बढऩे से आ रही समस्या


भिण्ड। गर्मी के सीजन आने के साथ ही जिले में जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है। पिछले वर्ष की तुलना में जिले के कई इलाकों में भू-जल स्तर 15 से 20 फीट नीचे पहुंचा है। इस बीच जिले में बंद पड़ी पेयजल योजनाओं में सुधार कर उन्हें दुरुस्त किया जा रहा है। हालांकि जल स्तर नीचे जाने का मुख्य कारण निजी बोरिंग में हो रही बढ़ोतरी और भू-जल स्तर बढ़ाने के उपायों को जमीनी स्तर पर लागू न करना है।

सरकारी आंकड़ों में जिले में वर्तमान भू-जल स्तर 110-120 फीट तक पहुंच गया है, जो पूर्व में 100 फीट के आसपास रहता था। जमीन में वाटर लेबल कम होने से शहर से लेकर ग्रामीण स्तर पर कई हैण्डपंप सूख चुके हैं। ऐसे में इनके भरोसे रहने वालों को पेयजल आपूर्ती के लिए परेशान होना पड़ता है। गिरते भू-जल स्तर को लेकर फिलहाल जिले में कोई ठोस कार्ययोजना नही बनाई गई है। पूर्व में इस दिशा में सुधार के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू करने को लेकर प्लान तैयार कर शासकीय भवनों सहित नए प्रोजेक्ट निर्माण के दौरान इसे आवश्यक रुप से बनाए जाने का नियम बनाया गया था। लेकिन समय के साथ यह कार्ययोजना ठण्डे बस्ते में डाल दी गई, जिसका परिणाम जमीन में वाटर लेबल नीचे जाने के रुप में सामने आ रहा है। वर्तमान में जल संकट की आहट गोहद, रौन, फूप, मेहगांव सहित शहर में भी सुनाई दे रही है। यहां बीते दो महीनों में आधा सैकड़ा के करीब हैण्डपंप भू-जल स्तर कम होने से पानी देना बंद कर चुके हैं। समय रहते इस दिशा में ठोस कदम न उठाया जाना बड़ी समस्या बन सकता है।

निजी बोर बढऩा बना मुख्य कारण:


वाटर लेबल खिसकने के मुख्य कारण के रुप में नागरिकों द्वारा निजी बोरिंग किया जाना है। एक अनुमान के अनुसार बीते एक वर्ष में अकेले शहरी क्षेत्र में ही 5 सैकड़ा के करीब निजी बोर कराए जा चुके है। इतनी बड़ी संख्या में प्रायवेट हैण्डपंप कराए जाने से जमीन से पानी का दोहन अधिक हो रहा है, जिस पर रोक लगाने के लिए फिलहाल अधिकारियों द्वारा ध्यान नही दिया जा रहा है। इसी प्रकार से शहर में संचालित वाहन धुलाई सेंटरों पर दिन भर हजारों लीटर पानी बर्बाद किया जाता है। सामान्यत: एक कार की धुलाई पर में इन कार वॉस सेंटरों पर लगभग 250 से 300 लीटर पानी की बर्बादी होती है। बेशकीमती पानी की इस बर्बादी पर रोक लगाए जाने को लेकर फिलहाल कोई नियम नही बनाया गया है।

बपिस बढऩे के साथ सूखने लगी नदियां

तापमान में हो रही बढोतरी के साथ ही पानी के स्त्रोत सूखने लगे हैं। ग्रामीण अंचल में बारिस का पानी सहेजने के लिए बनाए गए तालाबों में जहां नाम मात्र का पानी रह गया है तो वहीं क्वारी नदी अब नाले में तब्दील हो चुकी है, जिसमें बेहद कम पनी रह गया है। उल्लेखनीय है कि गोहद क्षेत्र में जल संकट का असर सबसे अधिक दिखाई दे रहा है। यहां लंबे अरसे से खारे पानी की समस्या बनी हुई है। पेयजल के रुप में पानी की उपलब्धता यहां एक बड़ी जरुरत के रुप में सामने आती है। इस बीच गर्मी बढऩे के साथ यहां वाटर लेबल खिसकने से हैण्डपंपों से कम पानी आने लगा है। इस संकट के बीच स्थानीय नगर पालिका द्वारा टेंकर से पानी सप्लाई शुरु कर दी गई है।

शुरु कराई बंद पेयजल योजना:

लगातार गिरते भू-जल स्तर सहित अन्य कई कारणों से जिले के दर्जन भर स्थानों पर पेयजल योजनाऐं बंद हो गई थीं, जिन्हें हाल ही में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग द्वारा चिन्हित कर दोबारा चालू किया जा रहा है, जिसमें फूप के चांसड, अहेंती, ऊमरी के अकहा सहित अन्य जगह शामिल हैं।  रौन क्षेत्र में जल स्तर 5 मीटर नीचे गया है। हालांकि इस बार सामान्य बरसात होने से भू-जल स्तर में ज्यादा कमी नही आने की बात कही जा रही है।

इनका कहना है:
बंद पड़ी पेयजल योजनाओं को पुन: दुरुस्त कराते हुए चालू किया जा रहा है। निजी बोर में बढ़ोतरी होने से पानी की खपत बढ़ी है, जिससे वाटर लेबल पर असर आ रहा है। इसको लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिल कर कार्ययोजना बनाई गई है।
रामकुमार सिंह, ईई पीएचई

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!