-सीता नवमी यानी वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी है सीता प्राकट्य दिवस
उद्भव स्थिति संहार कारिणीं, क्लेशहारिणीम्। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोहं रामवल्लभाम्।।
श्री स्वायंभवमनु की तपस्या से नैमिषारण्य में परम प्रभु परमेश्वर के प्रादुर्भाव के प्रसंग में श्री सीता तत्व का इस प्रकार विवेचन पाया गया है।
बाम भाग सोभति अनुकूला, आदिसक्ति छविनिधि जगमूला।
जासु अंस उपजहिं गुनखानी, अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी।
भृकुटि बिलास जासु जग होई,राम बाम दिसि सीता सोई।
इन तीन चौपाइयों में महाशक्ति स्वरूपा श्री सीता तत्व का स्वरूप वर्णन करते हुए प्रथम चौपाई के आरंभ में बाम भाग शब्द लिखकर तथा तीसरी चौपाई के अंतिम चरण में बाम दिसि शब्द का ही संपुट लगाकर जो एश्वर्य का वर्णन किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि श्री सीता जी श्री परमप्रभु से सदैव अभिन्नस्वरूपा हैं। इस बात की पुष्टि ग्रंथगत अपर प्रसंगों से भी भलीभांति हो रही है।
पंचांग के हिसाब से प्रतिवर्ष वैसाख महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता की जयंती मनती है। सीता की पहचान जनक पुत्री या भगवान राम की पत्नी के रूप में ही नहीं है, बल्कि वे आदर्श व्यक्तित्व, श्रेष्ठ विदुषी, दृढ़ प्रतिज्ञ, कोमल ह्रदय और मर्यादित जीवन जीने वालीं महान महिला के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सीता त्रेतायुग में विदेह के नाम से ख्यातिप्राप्त राजा जनक की नगरी मिथिला में अकाल पड़ गया था। बारिश नहीं हो रही थी। प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। ऐसे में ऋषियों ने सलाह दी कि यदि राजा वर्षा के लिए यज्ञ कराएं और स्वयं खेत में हल चलाएं। ऋषियों की बात मानकर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और खेत में हल चलाने पहुंचे। खेत में हल चलाने की शुरुआत के कुछ ही देर में एक जगह हल का फल अटक गया। उस जगह से मिट्टी हटाई गई तो वहां एक कलश से सुंदर कन्या मिली। राजा जनक ने जैसे ही कन्या को गोद में लिया। मिथिला में बारिश होना शुरू हो गई। उपजाऊ भूमि में अन्न पैदा करने की आस से प्रजा में खुशहाली छा गई। राजा ने कन्या का नाम सीता रखा।
इन प्रसंगों से समझें सीता का व्यक्तित्व
पति का संकोच हरने वाली
-वनवास के समय मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब गंगा पार करने के लिए पहुंचे तो उनके पास निषादराज को देने के लिए कुछ विशेष नहीं था। राम संकोच में थे। सीता ने राम के मन के संकोच को भांप लिया और अपनी अंगूठी उतारकर दे दी। हालांकि, केवट ने यह उपहार नहीं लिया।
वीर बालिका सीता
-बालिका सीता अपनी बहनों और सहेलियों के साथ खेलने में मगन थीं। खेल से संबंधित उनका उपकरण शिव धनुष के पास चला गया। बालिका सीता ने खेल-खेल में उन धनुष को उठा लिया। इस धनुष को बलशाली पुरुष हिला भी नहीं पाते थे।
समर्पण की भावना
-माता सीता ने पतिव्रत धर्म धारण किया और भगवान राम के प्रति अपनी आत्मा को समर्पित कर दिया। पति-पत्नी के बीच पनपने वाला यह प्रेम दांपत्य जीवन की बुनियाद है।
घर और बाहर बेहतर प्रबंधक
-जनक पुत्री विवाह के बाद जब अयोध्या पहुंचीं तो उन्होंने कुछ ही समय में ग्रहकार्य में दक्षता हासिल कर ली थी। इसके साथ ही राम के काम में भी सहायता करती थीं। राम के साथ भ्रमण के दौरान प्रजा के लिए इंतजाम करने के लिए नवाचार करना उन्हें बेहतरीन प्रबंधक बनाता है।
त्याग और धर्मनिष्ठता की प्रतीक
राजमहल में पलीं-बढ़ीं सीता ने वनवास के समय कोई शिकायत नहीं की। धन-एश्वर्य से भरे राजमहल को त्यागने में उन्होंने बिलकुल भी संकोच नहीं किया। पुत्र लवकुश का पालन-पोषण करते समय उन्होंने कुटिया में रहकर भी पुत्रों को राजधर्म सिखाया।
सौम्य और क्षमाशील
माता सीता का सौम्य व्यवहार, उनकी सादगी उन्हें दूसरों से अलग बनाती हैं। रावण ने सीता का लगातार अपमान किया। इसके बावजूद सीता ने अंतिम समय में रावण को क्षमा करके उसके अंतिम क्षणों को आसान किया।
लेखिका
नाम: राधा शर्मा
संप्रति: लेखिका शासकीय विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के पद पर पदस्थ हैं। शिक्षा विषय में परास्नातक हैं। कविता और स्तंभ लेखन करती हैं। मैं नदी हूं शीर्षक से कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है।