-
यात्रा ओलंपिक की (किश्त-10)
-17 सप्ताह 17 किश्त
साल 1900 में लगभग एक हजार एथलीट्स में उनकी संख्या महज 22 थी
ओलंपिक चार्टर में 1996 में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने को शामिल किया गया
समानता के लिए अभी लंबा सफर बाकी है
आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत 1896 में केवल पुरुषों की सहभागिता के साथ ही हुई थी, परंतु महिला भागीदारी भी अगले चार साल बाद के आयोजन में शुरु हुई पर समान आधार पर नहीं। महिला प्रतिभागियों की संख्या बहुत कम थी और उन्हें कुछ ही स्पर्धाओं में भाग लेने दिया गया।
महिलाओं की समान भागीदारी को कई तत्वों ने प्रभावित किया, 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में सामाजिक रूप से महिलाओं की भूमिका घर व परिवार तक सीमित मानी जाती थी। दूसरे उन्हें कमजोर व नम्र स्वभाव का माना जाता था और उनके बारे में निर्णय पुरुषवादी संगठन लेते थे। 1896 के पहले खेलों में मैल्पोमेमा नामक एक यूनानी महिला द्वारा मैराथन में भाग लेना चाहती थी परंतु उन्हें रोक दिया गया था। महिला के परिधान भी उनकी समान भागीदारी में एक बड़ी रुकावट थे। उन्हें शिष्ट व स्त्रीयोचित माने जाने वाले खेलों में ही भाग लेने दिया जाता था, जैसे टेनिस, गोल्फ, साइकलिंग, क्रोके, आइस स्केटिंग आदि। उच्चवर्गीय महिलाओं को घुड़सवारी व सेलिंग की स्पर्धाओं में भी शिरकत करने का अवसर मिला परंतु शारीरिक क्षमता वाले खेल जैसे एथलेटिक्स, तैराकी व हॉकी आदि में उनकी सहभागिता एक तरह से प्रतिबंधित थी। उन्हें प्रतिस्पर्धा वाले टीम गेम्स से भी दूर ही रखा गया था जो केवल पुरुषों के लिए ही खुले थे। महिलाओं के एकल स्पर्धाओं में भाग लेने को प्रोत्साहित किया जाता था।
कई दशकों तक खेलों में उनकी संख्या भी नगण्य थी। साल 1900 में लगभग एक हजार एथलीट्स में उनकी संख्या महज 22 थी, अगले 20 वर्षाें में कुल ढाई हजार से अधिक प्रतिभागियों में उनकी संख्या 65 तक ही थी, 1952 के खेलों में उनकी संख्या 519 थी, जसे कुल संख्या का 10 प्रतिशत ही थी। इस संख्या को एक हजार पार करने में और 20 साल लगे। 80 व 90 के दशक में इसमें तीव्र वृद्धि हुई और महिलाओं की संख्या लगभग एक तिहाई तक पहुँच गई। नई शताब्दी में हुए बदलावों से पिछले आयोजन तक संख्याबल की समानता अर्जित कर ली गई है।
जहाँ तक खेलों का सवाल है, महिलाओं की भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ी। 1912 में तैराकी, 1928 में एथलेटिक्स व जिमनास्टिक्स, 1964 में वॉली बॉल, 1968 में शूटिंग, 1976 में बास्केट बॉल व हैंडबॉल, 1980 में हॉकी, 1988 में टेनिस व टेबल टेनिस, 1992 में बैडमिंटन व जूडो व 1996 में फुटबॉल को शामिल करने से समानता बढ़ी और अब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने निर्णय लिया है कि, किसी भी नए खेल को शामिल करने की पहली शर्त यह होगी कि वह महिला व पुरुष दोनों के लिए आयोजित हो सके। लेकिन अभी भी कई पुराने खेल व इवेंट्स ऐसे हैं जो केवल पुरुषों के लिए ही आयोजित हाते हैं।
इसके अतिरिक्त कई समान स्पर्धाओं में महिला व पुरुष वर्ग में भिन्नतायें विद्यमान हैं, जैसे संयुक्त स्पर्धाओं वाली प्रतियेगिता हेप्टाथलॉन जिसमें सात अलग-अलग इवेंट्स होते हैं, केवल महिलाओं के लिए आयोजित होती है। एसके विपरीत पुरुषों के लिए आयोजित डेकाथलॉन में इस इवेंट्स होते हैं। 1964 से 1980 तक महिलाओं के लिए 5 इवेंट्स वाली पेंटाथलॉन आयोजित होती थी, जिसमें दो इवेंट्स बढ़ा कर अब हेप्टाथलॉन किया गया है। बाधा दौड़ में भी असमान मानक हैं, पुरुष 110 मीटर दौड़ते है, जबकि महिलायें 100 मीटर, दोनों को इस दौरान 10 बाधाओं को पार करना होता हैं। 1968 तक तो महिलाओं की दौड़ केवल 80 मीटर की ही थी। मध्यम दूरी की स्पर्धा में महिलाओं के लिए 3000 मीटर व पुरुषों के लिए 5000 मीटर की दूरी निर्धारित थी, 1996 में इसमें एकरूपता कर दोनों के लिए अब 5000 मीटर किया गया है। इसी प्रकार महिलाओं के लिए 1992 व 1996 में 10 कि.मी. की पैदल चाल का आयोजन किया गया, फिर उसे पुरुषों के समान 20 कि.मी. किया गया।
इसी प्रकार पुरुष बॉक्सिंग में तीन-तीन मिनट के तीन राउंड होते हैं जबकि महिलाओं के लिए दो-दो मिनट के चार राउंड। महिलाओं के लिए केवल तीन वेट केटेगरी होती हैं जबकि पुरुषों की दस। इसी प्रकार शूटिंग में भी महिलाओं को 25 व 50 मीटर की कई पिस्टल व राइफल स्पर्धाओं में भाग नहीं लेने दिया जाता। रोड साइकलिंग में भी महिलाओं की प्रतियोगिताओं की दूरी पुरुषों की तुलना में कम होती है। साल 2000 तक टेनिस में महिलाओं के मैच 3 सेट के होते थे जबकि पुरुष मुकाबलों में 5 सेट होते थे। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने अब समानता के चलते पुरुष वर्ग के मैच भी 3 सेट के कर दिए हैं।
पिछले दो दशक से अधिक समय से ओलंपिक खेलों में लैंगिक समानता व महिला अधिकारों के समर्थन में कई बड़े फैसले ले कर समाज व दुनिया को इस ओर सही दिशा में ले जाने में योगदान किया है। खेलों में महिला सहभागिता के सौ साल होने पर वर्ष 2000 के खेलों में मशाल प्रज्जवलन के लिए केवल महिलाओं की रिले टीम का चुनाव किया गया। 2012 के लंदन गेम्स में महिलाओं ने प्रत्येक खेल में भाग लिया और हर देश की टीम में महिला प्रतिनिधित्व था। इस साल के खलों में भी लैंगिक समानता को प्रदर्शित करने के लिए पारंपरिक रूप से अंतिम इवेंट के रूप में आयोजित हाने वाली पुरुष मैराथन दौड़ के स्थान पर महिला मैराथन आखिरी स्पर्धा होगी।
यद्यपि ओलंपिक चार्टर में 1996 में ही लैंगिक समानता को बढ़ावा देने को शामिल कर लिया गया था व बाद के वर्षों में इस हेतु सकारात्मक कार्य किए गए हैं, फिर भी पूरी तरह से समानता लाने के लिए अभी और प्रयास और समय लगना स्वाभाविक है।
लेखक परिचय
नाम: डॉ. शालीन शर्मा
संप्रति: खेल पत्रकारिता के साथ करियर की शुरुआत करने के बाद शासकीय सेवा में गए। वर्तमान में सहायक संचालक के पद पर पदस्थ हैं। इसके साथ ही शौकिया तौर पर द ग्रिप न्यूज के लिए खेलों से संबंधित आलेख लिख रहे हैं।