-पार,सिलटा, बरेली फॉर्मेशन में वगीर्कृत है ग्वालियर समूह काल के सबसे पुराने शैल
ग्वालियर। प्राचीन और नवीन एल्यूवियम से घिरे ग्वालियर जिले में पोलियोगिसी-प्रोटेरोजाइक काल के जैस्पर, चर्ट,डोलेराइट, क्वार्टज मिश्रित ग्रेनाइट का भंडार है। एवुलेशन के यह महत्वपूर्ण प्रमाण ग्वालियर काल के रूप में पहचान रखते हैं और देश-विदेश के जियोलॉजी छात्रों के लिए 255 करोड़ वर्ष पुराने साक्ष्यों को समझने के लिए एकमात्र सोर्स हैं।
प्रागेतिहासिक काल की घटनाओं के ये बेशकीमती प्रमाण बीते करीब 40 वर्ष से धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं। स्थिति यह है कि करोड़ों की संपदा बमुश्किल 350 रुपए प्रति टन के हिसाब से के्रशर पर पीसी जा रही है। छात्रों के अनुसार अगर ग्वालियर बेसिन को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले दस वर्ष में एवुलेशन की स्टडी के लिए प्रमाण ढूंढने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ेगी।
एक नजर में प्रमाण
-ग्वालियर बेसिन और बिजावर बेसिन (बुंदेलखंड) आपस में कनेक्टेड हैं। यहां करीब 1.9 बिलियन वर्ष पुरानी डोलेराइट रॉक्स हैं। जबकि कुछ जगह करीब 350 करोड़ वर्ष पुराने साक्ष्य मिल सकते हैं।
-शोध छात्रों के अध्ययन के अनुसार धरती की उत्पत्ति के साथ ही पहली अवसादी शैल बनी हैं, जिनके प्रमाण यहां हैं। ग्वालियर किले के पास सेंड स्टोन है, इसमें काला गोल पत्थर भी मिलता है। यह हॉरिजेंटल है। भूगर्भ विज्ञान पढ़ने और संरक्षित करने के लिए जरूरी है। यहां अभी रिसर्च पर प्रारंभिक स्तर पर ही हुई हैं, अगर गहराई से पड़ताल हो तो यह क्षेत्र अंतर राष्ट्रीय जियो साइंस साइट बन सकता है।
-ग्वालियर में आयरन मिक्स शैल और जास्पिलाइट के साथ लोह अयस्क मिलता है। ग्वालियर समूह के शेल में ग्रेफाइट भी मिलता है।
एक नजर में उम्र
-पेलिया मेसो प्रोटेरोजाइक (250-160 करोड़ वर्ष) काल के ग्वालियर समूह के शैल जिले के उत्तर पूर्वी भाग में हैं। इस शैल समूह को पार बालूकाश्म, सिंगापुर-सिलटा, सिथौली, नयागांव एवं बरेली फार्मेशन में वगीर्कृत किया गया है।
-जिले के दक्षिणी भाग में आर्कियन-प्रोटोरोजोइक (255 वर्ष) पुराने हैं। यहां कायंतरित अवसादी शैल, बेसिक एवं अति बेसिक शैलों के अवशेष भी मिलते है। चारों दिशाओं में क्वार्टज रीफ मिलती है। -उत्तर पश्चिम और दक्षिण पूर्व दिशा में डोलेराइट मिलता है।
इस तरह की स्टडी के लिए जरूरी है संरक्षण
-सेडिमेंटेड (अवसादी) स्तर के पेलियोप्रोटेरोजोइक जमा होने की स्थितियों, क्रस्टल इतिहास और वायुमंडलीय परिवर्तन, मोरार संरचना (मुरार फॉर्मेशन) में बैंडेड आयरन संरचनाएं (बेंडेड आयरन फॉर्मेशन) आॅक्सीजन के स्तर में वृद्धि (आॅक्सीजीनेशन इवेंट्स) आदि की स्टडी के लिए संरक्षण महत्वपूर्ण है। एपार्चियन अनकॉन्फॉर्मिटी (एपार्चियन अनकन्फर्मिटी) और बेसिन की विवर्तनिक (टैक्टोनिक) संरचना कैसे प्रभावित हुई यह स्टडी गहराई से हो सकती है।
रेवोलुशन का साक्ष्य है ग्वालियर बेसिन
भूवैज्ञानिक के रूप में मैंने बुंदेलखंड क्रेटन के परिवेश पर व्यापक शोध किया है, मेरे पीएचडी अध्ययन और इसकी भूवैज्ञानिक विकास पर चल रही जांच से यह स्पष्ट होता है कि ग्वालियर बेसिन में पृथ्वी के प्रारंभिक घटनाक्रम का महत्वपूर्ण भंडार है। ग्वालियर बेसिन, बिजावर बेसिन के साथ मिलकर, बुंदेलखंड क्रेटन के प्रोटेरोजोइक इतिहास को पुनर्निर्मित करने और इसे व्यापक क्रेटोनिक और सुपरकॉन्टिनेंटल प्रक्रियाओं (क्रेटोनिक एंड सुपरकॉन्टिनेंटल प्रोसेसेज) से जोड़ने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में जारी अनुसंधान प्रारंभिक महाद्वीपीय क्रस्ट निर्माण (अर्ली कॉन्टिनेंटल क्रस्ट फॉर्मेशन) और संसाधन संभावनाओं (रीसोर्स पोटेंशियल) को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
डॉ. सुमित मिश्रा,
पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो
– भूविज्ञान संस्थान, नेशनल आॅटोनोमस यूनिवर्सिटी-मेक्सिको
माइनिंग चाहे वैध हो या अवैध,इससे हमारी भूसंपदा स्थायी रूप से नष्ट होती है जिसे हम खेती की तरह दोबारा उपजा नहीं सकते हैं। इसलिए जब तक बेहद जरूरी व आवश्यक न हो माइनिंग करने से बचना चाहिए।आमजन के उपयोग के लिए बिल्डिंग मटेरियल की आवश्यकता एवं स्वरोजगार के चलते बड़े पैमाने पर ग्वालियर अंचल में माइनिंग मिनरल के रूप में खनिज पट्टों का आवंटन करवा कर भूसंपदा के अंधाधुंध दोहन की बाढ़ सी आई हुई है,जिससे करोंड़ो वर्ष पुराने “ग्वालियर ग्रुप” की ये चट्टानें स्थायी रूप से नष्ट हो रहीं हैं। चूँकि प्रदेश का राजस्व बढ़ाने व स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने में खनन का विशेष योगदान है, इसलिए प्रदेश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए इस खनिज संपदा का अतिआवश्यक होने पर ही साइंटिफिक, सुनियोजित व सुरक्षित उत्खनन किया जाना आवश्यक है।
प्रो. एस एन महापात्रा,
एचओडी-अर्थ साइंस(एसओएस)-जीवाजी विश्वविद्यालय
-अभी माइनिंग का क्षेत्र बहुत सीमित है। यहां सेडिमेंटेड रॉक्स हैं, ब्रेसिया और कांग्लोमेटस पाए जाते हैं। एक्स्प्लोशन के लिए इस क्षेत्र को आगे बढ़ाया गया है। इसमें जो साक्ष्य आएंगे उनके आधार पर भविष्य के अध्ययन के रास्ते खुलेंगे। यह सही है कि जियो साइंस के अध्ययन में ग्वालियर बेसिन महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अध्ययन क्षेत्र को संरक्षित रखने के लिए अलग से प्रयास होते हैं।
प्रदीप भूरिया
माइनिंग ऑफिसर