दिग्विजय सिंह के करीबियों के नजदीक पहुंच रहे सिंधिया

-पिछोर के पूर्व विधायक के बाद भिंड के क्षत्रप डॉ. गोविंद सिंह से भी एकांतिक वातार्लाप
-तोमर के करीबी रहे पूर्व अधिकारी भी नजर आ रहे अब सिंधिया के साथ

ग्वालियर। कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक कयासबाजी में छह वर्ष बाद हुई केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और डॉ. गोविंद सिंह के एकांतिक वातार्लाप ने एकदम से उबाल ला दिया है। इससे पहले सिंधिया पिछोर क्षेत्र के कद्दावर नेता केपी सिंह से भी मिल चुके हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल की कांग्रेसी राजनीति के इन दो नेताओं से निश्चित अंतराल में हुई मुलाकात को राजनीतिक समझ रखने वाले वरिष्ठ रणनीतिक बता रहे हैं। पुराने रणनीतिकारों का मानना है कि सिंधिया राजनीति के पुराने धुर विरोधी और पुराने दिग्गजों के बहाने कुटिल राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के किले में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं।


जनवरी में खूब हुई बयानबाजी
सिंधिया राजघराने के सामंत रहे राघोगढ़ घराने में 200 वर्ष से सामंती को लेकर टीस रही है। वर्ष 2018 में सिंधिया के एमपी का सीएम न बनने के पीछे अपरोक्ष रूप से कांग्रेस में मजबूत रहे दिग्विजय सिंह की रणनीति मानी जाती है। हाल ही में सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच जमकर बयानबाजी भी हुई है। इस सबके बाद अब दिग्विजय सिंह की टीम के पुराने सिपहसालार माने जाने वाले केपी और डॉ. सिंह से तय अंतराल में एक-एक करके हुई मुलाकात को दिग्विजय सिंह को अंचल में राजनीतिक रूप से कमजोर करने की रणनीतिक चाल माना जा रहा है।

पहले भी चौंका चुके हैं सिंधिया
10 अक्टूबर 2019 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अचानक डॉ. गोविंद सिंह को कॉल करके डिनर की मंशा जताई थी। तब डॉ. सिंह ने सिंधिया के रात्रि भोज का इंतजाम कराया था। सिंधिया करीब 50 समर्थकों के साथ गोविंद सिंह के यहां लंच के लिए गए थे। इस बार मौका अलग था, वे शोक व्यक्त करने डॉ. सिंह के लहार स्थित निवास पर पहुंचे। ऊजार्मंत्री प्रद्युम्नसिंह भी उनके साथ थे। करीब एक घंटे तक बंद कमरे में डॉ. सिंह और सिंधिया के बीच बातचीत हुई। इस दौरान ऊजार्मंत्री कक्ष के बाहर रहे। इस एक घंटे की मुलाकात को अब राजनीतिक विश्लेषक अपने-अपने तरीके से परिभाषित कर रहे हैं।

भाजपा में भी उथल-पुथल
सिंधिया की सक्रियता, राजनीतिक-प्रशासनिक बैठकें और कार्यकतार्ओं के बीच सामंजस्य बनाने का नया तरीका पुराने भाजपाइयों को भी चुभ रहा है। अंचल की भाजपाई राजनीति के क्षत्रप अपने कारिंदों के सहारे किसी भी तरह से सिंधिया के प्रभाव को कम करने की जुगत में लगे रहे हैं। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिंधिया ने जब-जब जिस-जिस विषय को लेकर बैठक ली। उसके तुरंत बाद दूसरे खेमे के किसी न किसी नेता ने उसी विषय पर बैठक दोहराई है।

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