-बंधुआ मजदूरी के प्रति जागरूक करने कटोराताल स्थित खुले मंच रखे विशेष विशेषज्ञों ने विचार
ग्वालियर। हम एक बंधुआ मजदूरी जैसे ज्वलंत विषय पर जुड़े हैं, हालांकि, यह अब बिसरी बात हो गई है। इसके बावजूद यह देखा गया है कि आजकल कहीं मजदूरी के लिए व्यक्ति जाता तो स्वेच्छा से है, लेकिन बाद में वह बंधुआ के फेर में फंस जाता है। हाल ही में कुछ ऐसे केस सामने आए हैं, जिनमें स्पेशल एबिलिटी वाले लोगों को शिकार बनाया गया है। बंधुआ की प्रवृति वाले लोग स्पेशल एबिलिटी वालों की मानसिक स्थिति का फायदा उठाते हैं, क्योंकि ये अपनी बीती किसी को बेहतर तरीके से समझा नहीं पाते हैं। यह भी देखा गया है कि बांडेड लेबर को नशे की लत होती है और उनका जीवन पशुवत हो जाता है। इसके लिए मजदूरों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।
कई बार बंधुआ की बेड़ी दिखती नहीं है, लेकिन होती है, हमें पता ही नहीं होता कि हम किसी के बंधुआ हैं। अगर किसी जॉब करने वाले को भी सप्ताह में अवकाश नहीं मिल रहा तो एक हिसाब से वह बंधुआ जैसा ही है। अगर किसी गृहणी को घर के काम से सप्ताह में कम से कम एक बार छुट्टी नहीं मिल रही तो वह भी बंधुआ ही है। विषय विशेषज्ञ के तौर पर यह विचार सीएसपी हिना खान ने कटोरा ताल स्थित खुला मंच पर हुए आयोजन में व्यक्त किए।
बंधुआ मजदूरी उन्मूलन दिवस पर रविवार की शाम 4 बजे से कटोरा ताल के सामने स्थित खुला मंच पर जागरूकता कार्यक्रम हुआ।
कार्यक्रम में सीएसपी हिना खान, जिला विधिक सहायता अधिकारी दीपक शर्मा, सहायक संचालक डॉ. शालीन शर्मा, हार्टबीट फाउंडेशन के डायरेक्टर और मनोवैज्ञानिक काउंसलर आलोक बैंजामिन, बिड़ला नर्सिंग कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल सुदीप जॉय, इंटरनेशनल ट्रेवलर माधवी सिंह, स्वर्ग सदन के डायरेक्टर विकास गोस्वामी, महादेव समर्पण सेवा संस्थान के अमित द्विवेदी, श्रमिकों के लिए एंटॉयलर स्टार्टअप शुरू करने वाले ऋषि नाथ, मिताली भार्गव, दीपक यादव, प्रभांशु त्रिवेदी सहित अन्य मौजूद थे। आयोजन की शुरुआत होस्ट मिताली द्वारा दिए गए परिचय से हुई। इसके बाद सभी विशेषज्ञों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
यह बोले विशेषज्ञ
–महिला बाल विकास के सहायक संचालक डॉ. शालीन शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि अधिकतर समय बंधुआ मजदूरी के मामले में सामने आते ही नहीं हैं। कारण यह है कि बंधुआ को यह पता ही नहीं होता कि वह किसी के यहां बंधुआ है। जबकि वास्तविकता में अगर किसी के यहां कोई काम कर रहा है और उसे तमाम सुविधाएं देकर अपने घर जाने से रोका जा रहा है तो वह अघोषित बंधुआ है। अगर जबरन रोककर रखा जा रहा है तो वह घोषित बंधुआ है। बाल मजदूूरी को लेकर भी कई प्रकरण सामने आए हैं। घरों में काम कराने के लिए बच्चों की ट्रैफिकिंग के मामले सामने आए हैं। जो मामले सामने आए हैं, उनमें सख्ती से कार्रवाई भी हुई है।
–श्रम निरीक्षक आलोक शर्मा ने कहा कि यूपी के शहरों से ईंट भट्टा पर 700 रुपये हजार के हिसाब से लेबर लाई जाती है। ग्वालियर, मुरैना, भिंड,दतिया क्षेत्र में ये काम होता है। बोंडेड लेबर को 3 लाख रुपए राहत देने का नियम है, लेकिन कई बार बाउंडेड लेबर को मिलने वाले पैसे बिचौलिये बंदरबांट कर लेते हैं। इस क्षेत्र में कुछ गिरोह भी काम कर रहे हैं। कुछ लोग जानबूझकर भी बंधुआ होने की शिकायत करवाते हैं, फिर समझौता करके वसूली भी करते हैं। ऐसे में यह भी देखना जरूरी होता है कि किसी निर्दोष को सजा न मिले।
-मनोवैज्ञानिक काउंसलर आलोक बैंजामिन ने बताया कि बंधुआ मजदूरी ऐसी दशा है, जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से बेहद कमजोर हो जाता है, वह यह मान बैठता है कि जिसके यहां काम कर रहे हैं, वही उसकी नियति है। उसे पता ही नहीं चलता कि वह बंधुआ मजदूरी कर रहा है। कुछ के साथ अत्याचार भी होता है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग में सबसे बड़ी चुनौती यह उनको मानसिक रूप से मजबूत करके सामान्य जीवन में वापस लाने की होती है।