डी.आर.डी.ई. द्वारा विकसित स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर सेना में शामिल

अकाडा को विकसित कर रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत बना चौथा देश
-डीआरडीई में विकसित हुई स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर एवं रिमाट अलार्म यूनिट

ग्वालियर। डी.आर.डी.ई. के निदेशक डॉ. मनमोहन परीडा ने बताया कि भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश है, जिसके पास देश में विकसित हुई विकसित हुई स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर एवं रिमाट अलार्म यूनिट की प्रौद्योगिकी है। स्वदेशी रूप से विकसित किए गए इस यंत्र से जहां देश की सेनाओं और सुरक्षा बलों के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति होगी, वहीं इसका लंबे समय तक इस्तेमाल, बेहतर रख-रखाव, स्पेयर पाट्र्स/एक्सेसरीज़ की आपूर्ति, आदि सुनिश्चित हो सकेगी। स्वदेशी रूप से विकसित किया गया यह उत्पाद आई.डी.डी.एम., ‘मेक इन इंडियाÓ और ‘आत्म निर्भर भारतÓ मिशन की दिशा में एक लंबी छलांग है।

उन्होंने कहा कि भारतीय सेना और अन्य अर्धसैनिक बलों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए एवं बड़े पैमाने पर अकाडा के उत्पादन को सुनिश्चित करने के लिए इसकी प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण 14 दिसंबर 2021 को किया गया था, जो आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान आयोजित हुआ था। यह हस्तांतरण माननीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि अकाडा में इस्तेमाल हुई लगभग 80त्न सामग्री स्वदेशी रूप से विकसित है।

सेना ने दिया ऑर्डर

अकाडा का क्षेत्र मूल्यांकन समाप्त होने के बाद अब भारतीय सेना और वायु सेना ने अकाडा की 223 यूनिट की खरीद के लिए आर्डर दिया है। डी.आर.डी.ई. में वर्षों के अनुसंधान और कठोर परीक्षण के उपरांत अस्तित्व में आए इस उत्पाद को विकसित करने वाली टीम के सदस्य एवं डी.आर.डी.ई. के वैज्ञानिक डॉ. सुशील बाथम ने बताया कि अकाडा के लिए कठोर क्षेत्र मूल्यांकन परीक्षण अगस्त 2022 से अप्रैल 2023 तक आयोजित किए गए थे। इनमें पर्यावरणीय तनाव स्क्रीनिंग परीक्षण, रख-रखाव मूल्यांकन परीक्षण, तकनीकी परीक्षण और लाइव एजेंट परीक्षण आदि थे। अब भारतीय सेना और वायु सेना ने 80.43 करोड़ रुपये कीमत के 223 अकाडा की खरीद का अनुबंध 25 फरवरी 2025 को डी.आर.डी.ई. के उत्पादन साझेदार के साथ किया है।

ऑन साइट पहचान में सक्षम है यंत्र

यह डिटैक्टर रासायनिक युद्धक अभिकारकों, विषैली गैसों और चयनित विषैले औद्योगिक रसायनों की ऑन-साइट पहचान करने में सक्षम है। इसकी प्रणाली में पर्यावरण से हवा का सैंपल लेकर रासायनिक युद्धक अभिकारकों का पता लगाया जाता है। यह उपकरण आयन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री के सिद्धांत पर काम करता है। यह अत्याधुनिक रासायनिक पहचान प्रौद्योगिकी केवल कुछ विकसित देशों के पास ही उपलब्ध है। अकाडा एक स्थिर बिंदु पर उपयोग किया जाने वाला रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर है। इसमें बैटरी होती है और इसे वाहन पर भी माउंट किया जा सकता है। डिटेक्टर में केंद्रीय निगरानी स्टेशन पर डेटा प्राप्त करने के लिए रिमोट अलार्म यूनिट होती है। इसमें नेटवर्किंग क्षमता भी है। युद्ध और शांति दोनों समय उपयोग के साथ सी.बी.आर.एन. रक्षा के क्षेत्र में अकाडा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

 

डी.आर.डी.ई., ग्वालियर ने वर्षों के अनुसंधान के बाद मेसर्स एल.एण्ड टी. के साथ उत्पादन साझेदारी करते हुए इस स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर (अकाडा) का विकास किया है। अन्य निजी उद्यमों को भी इसकी प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने पर भी विचार चल रहा है। डी.आर.डी.ई., ग्वालियर द्वारा विकसित यंत्र का लाइव केमिकल एजेंट्स पर डी.आर.डी.ई., ग्वालियर और टी.एन.ओ. नीदरलैंड्स में परीक्षण किया गया है।

 

उल्लेखनीय है कि विशेष अर्धसैनिक बलों एवं सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अकाडा का उपयोग सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को विभिन्न प्लेटफार्मों जैसे कि नौसैनिक पोतों, बख्तरबंद वाहनों, विमान आदि के लिए डिटेक्टर्स की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। भविष्य में इस उत्पाद के अन्य देशों में भी निर्यात की संभावना है।

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