हास्य और श्रंगार रस के कवि सम्मेलन ‘रसरंग’ में आनंद में डूबे काव्य प्रेमी
मुहब्बत एक समंदर है न कोशिश तैरने की कर
जो इसमें डूब जाता है वही उस पार होता है।।
तुम हमारी कसम तोड़ दो, हम तुम्हारी कसम तोड़ दें। मुहब्बत एक समंदर है न कोशिश तैरने की कर,जो इसमें डूब जाता है वही उस पार होता है।
श्रंगार रस की इन पंक्तियों के साथ एलएनआईपीई के टैगोर सभागार में ‘रससंग’ कवि सम्मेलन का शानदार आयोजन हुआ। ह्यूमन हैप्पीनेस फाउंडेशन एवं सुशीलाम् स्मृति मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मलेन में देश के सुप्रसिद्ध कवियों ने कविता पाठ किया। रंग पंचमी को हुए इस आयोजन में श्रोताओं ने भी तालियों के साथ कवियों को खूब उत्साहित किया। कवि सम्मेलन में श्रंगार रस के प्रख्यात कवि डॉ विष्णु सक्सेना, श्वेता सिंह, हास्य रस के कवि कुशल कुशलेन्द्र, विकास बौखल, मंजीत सिंह, ओज के कवि भूपेन्द्र सिंह ने अपनी रचनाएं पढ़ीं। रंग पंचमी को एनआईपीई के टैगोर हॉल में हुए इस कवि सम्मेलन का आरंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। कवियों का स्वागत कार्यक्रम संयोजक लोकेन्द्र पाराशर ने किया।
इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर, नगर निगम सभापति मनोज तोमर, पूर्व संभागीय आयुक्त बीएम शर्मा, पत्रिका के संपादक नितिन त्रिपाठी, नई दुनिया के संपादक वीरेन्द्र तिवारी, चंैबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल, भाजयुमो नेता देवेन्द्र प्रताप सिंह तोमर, अमर सिंह माहौर, डॉ नीरज शर्मा, डॉ जेएस सिकरवार, धर्मेन्द्र तोमर, डॉ कमल भदौरिया, अनिल त्रिपाठी, रवि तोमर, डॉ अपर्णा पाटिल, खुशबू गुप्ता, शकुंतला परिहार, हेमलता बुधोलिया, दिनेश परिहार, संजय भदौरिया आदि उपस्थित थे।
कवि सम्मेलन की शुरुआत बारांबंकी से आए हास्य कवि विकास बौखल के चुटीले अंदाज के साथ हुई। विकास बौखल ने…..
किसी खंजर से ना तलवार से जोड़ा जाए।
सारी दुनिया को चलो प्यार से
जोड़ा जाए।
ये किसी शख्स को दोबारा ना मिलने
पाए,
प्यार के रोग को आधार से जोड़ा जाए। हास्य कविता के साथ किया। इन पंक्तियों के साथ ही पूरे हॉल में देर तक तालियां बजती रहीं।
इसके बाद गाजियाबाद से आए कवि कुशल कुशलेन्द्र की बारी आई जिन्होंने …
खुशी सुख चैन अब सबके घरानों में नहीं मिलती
सुकूं की जिंदगी हमको दुकानों में नहीं मिलती
बहुत अनमोल दौलत है, दुआ ले लो बुजुर्गों की
ये वो दौलत है जो हमको खजानों में नहीं मिलती…
गाजियाबाद के कवि भूपेन्द्र राघव ने अपनी ओजपूर्ण वाणी में पढ़ा……
नन्हें बालक का क्रुद्ध शब्द
तब उठा शिविर का मौन चीर
खंडित होगा यह चक्रव्यूह
होना न तात किंचित अधीर
इसके बाद फरीदाबाद से आए हास्य कवि सरदार मंजीत सिंह ने अपने काव्य पाठ से सभी श्रोताओं को खूब हंसाया। उनके व्यंग के साथ ही पिता के अनुभवों को उकेरती कविता ने सभी को भावुक कर दिया।
है जलती आग सीने में
नहीं डरता सिकन्दर से
मगर हूँ बाप बेटी का
डरा रहता हूँ अन्दर से।
वडोदरा से आईं कवियत्री श्वेता सिंह ने श्रंगार रस में शानदार काव्य पाठ किया………….
उदासी से भरे तनहा हमारे दिन गुजरते हैं।
वहीं फिर रात में आ के विरह के नाग डसते हैं।
इनायत मानसूनों की इधर भी है उधर भी है।
इधर आँखें बरसती हैं उधर बादल बरसते हैं।
आंखों- आंखों में बतियाना अच्छा लगता है।
ख्वाबों का सन्दूक सजाना अच्छा लगता है।।
रिश्ता कोई जुड़ा नहीं पर कहता है मैं उसकी हूँ।
उसका मुझपे हक जतलाना अच्छा लगता है।।
यहाँ जो जान देने के लिये तैयार होता है।।
इश्क की राह में चलने का वो हक़दार होता है।
मुहब्बत एक समंदर है न कोशिश तैरने की कर
जो इसमें डूब जाता है वही उस पार होता है।।
देश के प्रख्यात कवि डॉ विष्णु सक्सेना ने अपनी काव्य प्रस्तुति में श्रंगार और ओज के सामंजस्य के साथ कविता पाठ किया।
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं
आंख खोली तो तुम रुक्मणी सी दिखीं
बंद की आंख तो राधिका तुम लगीं,
जब भी देखा तुम्हें शांत एकांत में मीराबाई सी इक साधिका तुम लगीं।
डॉ विष्णु सक्सेना के श्रंगार रस से सजे गीत…………चांदनी रात में रंग ले हाथ में.. ने खूब तालियां बटोरीं।
चांदनी रात में- रंग ले हाथ में
जिंदगी को नया मोड़ दें,
तुम हमारी कसम तोड़ दो
हम तुम्हारी कसम तोड़ दें