Olympic Boycott : देशों ने छः बार किया ओलंपिक खेलों का बहिष्कार

  • यात्रा ओलंपिक की (किश्त-8)

    -17 सप्ताह 17 किश्त

    – अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा कई बार राष्ट्रों को प्रतिबंधित किया गया है।

    – छः बार देशों ने भी ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया है।

ओलंपिक खेलों का आयोजन हमेशा से ही विश्व शांति और बंधुतव को साकार करने की दिशा में सार्थक प्रयास रहा है। किंतु कई बार राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, युद्ध व अन्य घटनाओं तथा कारणों से ये आयोजन नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। प्रथम विश्व युद्ध के कारण 1916 में तथा द्वितीय विश्व युद्ध के कारण 1940 व 1944 में इन खेलों का आयोजन रद्द करना पड़ा था। विश्व सौहार्द को बढ़ावा देने वाले इस आयोजन को कई लोग पॉवर पॉलीटिक्स के प्लेटफॉर्म के रूप में देखते हैं। आलोचकों का मानना है कि, केवल कुछ आयोजनों को छोड़ दें तो सभी खेल पश्चिमी देशों में ही हुए हैं। अफ्रीकी महाद्वीप में अभी तक कोई आयोजन नहीं हुआ है। एशिया में मात्र चार बार ग्रीष्मकालीन खेलों का आयोजन हुआ है। जबकि यूरोप व अमरीका में ग्रीष्म व शीतकालीन खेलों को मिला कर अब तक कुल 46 बार आयोजन हो चुका है।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा कई बार राष्ट्रों को प्रतिबंधित किया गया है, जैसे कि जर्मनी व जापान को द्वितीय विश्व युद्ध में उनकी भूमिका के कारण, दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद युग में और 2020 में रूस को डोपिंग सकैंडल के कारण। इसके अतिरिक्त छः बार देशों ने भी ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया है।

1956 में ओलंपिक खेलों का आयोजन पहली बार दक्षिणी गोलार्ध में हुआ, जब ऑस्ट्रेलिया के शहर मेलबॉर्न को इसके लिए चुना गया। ये खेल पहली बार बॉयकॉट का शिकार होने वाले पहले ओलंपिक भी थे। 1956 में स्वेज़ नहर के राष्ट्रीयकरण के कारण ब्रिटेन, फ्रांस व इज़रायल ने मिस्र पर हमला कर दिया था। जिसके विरोध में मिस्र, ईराक और लेबनान ने इन खेलों के बहिष्कार का निर्णय लिया। इसी वर्ष सोवियत सेना के हंगरी में प्रवेश के विरोध में नीदरलैंड्स, स्पेन और स्विट्ज़रलैंड ने भी नाम वापस ले लिया। साथ ही ताइवान की प्रतिभागिता का विरोध करने के कारण चीन ने भी इन खेलों के बॉयकॉट का फैसला किया।

अपने हक में कई देशों के समर्थन के बावजूद हंगरी ने खेलों में हिस्सा लिया और उनके एथलीट्स को दर्शकों का पूरा समर्थन मिला, जबकि सोवियत खिलाड़ियों को हूटिंग का सामना करना पड़ा। दोनों देशों के बीच हुए वाटर पोलो मैच के दौरान एक सोवियत खिलाड़ी द्वारा हंगरी की ओर से दो गोल करने वाले एर्विन ज़ेडॉर को सिर पर चोट पहुँचाई गई, जिससे उनके सिर से खून निकलने लगा और बाकी खिलाड़ियों और दर्शकों/समर्थकों के बीच तनाव और हाथाप़ाई की स्थिति बनने पर मैच को बीच में रोकना पड़ा। ब्लड इन द वाटर के नाम से जाने गए मैच में उस समय हंगरी 4-0 से आगे था और उसे विजेता घोषित किया गया, आगे चल कर हंगरी ने वाटर पोलो का स्वर्ण पदक भी जीता। शांति व सौहार्द के प्रतीक के रूप में इस साल के समापन  समारोह में समस्त एथलीट सामूहिक रूप से परेड में शामिल हुए न कि पारंपरिक रूप से, राष्ट्रीय दलों के रूप में।

1964 में टोक्यो में हुए खेल, एशिया में पहले आयोजन थे, ये भी बहिष्कार का हिस्सा बने, जब तीन देशों चीन, उत्तर कोरिया और इंडोनेशिया ने अपने प्रमुख खिलाड़ियों को प्रतिबंध से बचाने के लिए बॉयकॉट का सहारा लिया। इसी वर्ष दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद अपनाने के लिए प्रतिबंधित किया गया। यह प्रतिबंध 1992 तक लागू रहा।

1976 मॉन्ट्रियल खेलों में न्यूज़ीलैंड की प्रतिभागिता के विरोध में 28 अफ्रीकी देशों ने खेलों का बहिष्कार किया था। ये देश उसी साल न्यूज़ीलैंड की रग्बी टीम द्वारा, रंगभेद के लिए प्रतिबंधित दक्षिण अफ्रीका का दौरा करने के कारण न्यूज़ीलैंड पर प्रतिबंध की माँग कर रहे थे। ताइवान ने भी अलग कारणों से अपना नाम वापस ले लिया था। बहिष्कार के कारण आयोजकों को काफी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा और अफ्रीकी देशों के बिना ट्रेक एंड फील्ड स्पधाओं का रंग फीका रहा।

शीत युद्ध के काल में 1980 के मॉस्को व 1984 के लॉस एंजलिस खेलों पर विश्व राजनीति का प्रभाव स्पष्ट देखने को मिला। दिसम्बर 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के आक्रमण के विरोध में अमरीका व उसके सहयोगी सहित कुल 67 देशों ने मॉस्को में आयोजित खेलों में भाग लेने से इंकार कर दिया, जिसके कारण केवल 80 देशों ने ही खेलों में शिरकत की। अफगानिस्तान ने खेलों में हिस्सा लिया। चार साल बाद इसके विरोध में सोवियत संघ सहित 19 राष्ट्रों ने लॉस एंजलिस खेलों का बहिष्कार किया। 140 देशों के भाग लेने से ये खेल सफल आयेजन साबित हुए। भारत ने 1980 व 1984 दोनों आयोजनों भाग लिया था।

शीत युद्ध के आखिरी वर्षोें में 1988 में सियोल, दक्षिण कोरिया में अयोजित खेलों ने अंतिम बार बॉयकॉट का सामना किया। तब उत्तर कोरिया, क्यूबा, इथोपिया और निकारागुआ सहित 7 देशों ने बहिष्कार किया था। उत्तर कोरिया खेलों की सह-मेजबानी चाहता था। बॉयकॉट का खेलों पर कोई असर नहीं पड़ा और 159 देशों के 8000 से अधिक खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया। बाद में उत्तर व दक्षिण कोरिया 2020 के खेलों में संयुक्त दल भेजने पर सहमत हुए थे। हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण 2021 में टोक्यो में आयोजित खेलों में उत्तर कोरिया ने कोरोना महामारी के कारण खेलों में भाग नहीं लिया था।

2022 के बीजिंग शीतकालीन खेलों में 10 देशों ने चीन द्वारा वीगर समुदाय के विरूद्ध किए जा रहे बुरे बर्ताव के विरोध में डिप्लोमेटिक बॉयकॉट किया और अपने अधिकारियों को जाने से रोक दिया था। बाद में भारत ने भी चीनी सेना, पीपल्स लिबरेशन आर्मी के एक रेजीमेंटल कमांडर क्यूई फेबाओ को प्रमुख ओलंपिक मशाल वाहक बनाने के विरोध में बॉयकॉट का समर्थन किया।

फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के कारण, 2024 के ओलंपिक खेलों में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा रूस व बेलारूस का टीम स्पर्धाओं में प्रवेश प्रतिबंधित किया गया है। एकल स्पर्धाओं में खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के झंडे तले खेल सकते हैं।

शांति और बंधुतव का प्रतीक रहे ओलंपिक खेल भी भू-राजनीति से प्रभावित रहे हैं, बांटने के प्रयास हर स्तर पर हुए है और होते रहेंगे, परंतु अपनी 128 साल की यात्रा में इन खेलों ने देशों, समुदायो और लोगों को जोड़ा ही है और यह प्रयास और काफिला निरंतर जारी रहने वाला है।

लेखक परिचय
नाम: डॉ. शालीन शर्मा


संप्रति: खेल पत्रकारिता के साथ करियर की शुरुआत करने के बाद शासकीय सेवा में गए। वर्तमान में सहायक संचालक के पद पर पदस्थ हैं। इसके साथ ही शौकिया तौर पर द ग्रिप न्यूज के लिए खेलों से संबंधित आलेख लिख रहे हैं।

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